प्रौढ़ - रचनानुवाद कौमुदी | Praudh - Rachananuvad Kaumudi

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Praudh - Rachananuvad Kaumudi by कपिलदेव द्विवेदी - Kapildev Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रमा, छः , ठृतीया, गस्‌ , बद्‌ धातु . छठ अभ्यास हे ु /.., संस्छत वनाओ--(क)(रमा, छडः ) १. सुशीछा सवेरे उठी, उसने मादा भीर ' पिता को प्रणाम किया; पाठ पढ़ा, लेख लिखा, व्याकरण याद किया, खाना खाया और: . विद्यालय को गई | २, पार्वती उपवन में गई, उसने फल देखे, फूल सूँघे, पेड़ पर चढ़ी,. लतासे फूल छुने और फूलों को घर छाई | ३, व इधर का रहा, न उघर का रहा | ४. छड़की पराईं सम्पत्ति है। (ख) (गम्‌ धातु) १. मेरा शरीर आगे जा रहा है और मन अपरिचित सा होकर पीछेकी ओर दौद़ता है | २, शुढ्धिमानों का समय काव्य-शास्त्र के विनोद में बीतता है | ३, निरर्थक बकवाद से विद्वानों में मेरी ईँसी हों जाएगी | -. ४, न चले तो गरुड भी एक पैर नहीं सरक सकता | ५. उस बालिका का नाम. भारती * शक्खा गया। ६. जलाशय तक प्रिय व्यक्ति को पहुँचाने जाना चाहिए | ७. राजा 'दिलीप छाया की तरह उस गाय के पीछे चछा । ८, सुदक्षिणा इस प्रकार गाय के '-. मार्ग पर चली, जैसे श्रुति के अर्थ के पीछे स्ट्रति चलती है | ९, में आपकी बात नहीं .. समझा | १०. जआागेकी बात तो समझ में आ गई। ११, में अपने आपको अपराधी ... सा समझ रहा हूँ । १२, मेरी बुद्धि-कुछ विश्वय नहीं कर पा रही है। १३. अगस्त . आदि ऋषियों से वेदान्त पढ़ने के लिए में वाल्मीकि के पास से यहाँ आई हूँ । १४. हम आपकी यह बात स्वीकार करते हैं । मेरे घर पाहुन (अतिथि) आए हैं | . १६, सज्जन ' सज्जनों के घर आते हैं। १७, कमला विद्यालय से घर लोटकर आई (प्रत्यागम्‌ ) । १८. ऋषि दयानन्द घर से निकलकर वन में गए, | १९, प्रयाग में गंगा ओऔर यंभुना मिलती हैं | २०, मिलकर चलो, मिलकर बोलो । २१, चन्द्रमा निकछता * है, अन्धकार दूर होता है | २२, पक्षी आकाश में उड़कर जाते हैं | २३, शिष्य गुरु के पास गया | २४. मेघरहित चन्द्रमा को चाँदनी प्राप्त हुईं । (ग) (तृतीया) १, कमला : ने होल्डर से कापी पर लेख लिखा | २. उमा ने डंडे से बन्दर को मारा । ३, वालूक : शेंद से खेला | ४. धनहीन जीते हैं | ५. शान्ति ने सरलता से पुस्तक पढ़ ली | ६. उसका नाम कृष्ण है | ७, उसका गोत्र भारद्वाज है। ८. वह संममार्ग से आता है। , ९, उसने एक धर्ष में गीता पढ़ी | १०, वह सात दिल में नीरोग हुआ | ११, वह घर्म से . बढ़ता है। . रा संकेत-- (क) १. उदतिष्ठतू, पितरी। २. आरोहत्‌ , अचिनोत्‌, आनयत्‌! ३. इतों अटष्टस्ततो अ्रष्ट: । ४. अर्थों हि कन्या परकीय एवं | (ख) १. धावति पश्चादसंस्तुतं चेतः | २- काली गच्छति धीमतास्‌। हे. अनर्गलप्रलूपेन * विदुर्षां मध्ये गमिष्यान्युपहास्यतान्‌ | ४. असच्छन्‌ वैनतेयोडपि । ७. भारत्याख्यां जगाम । 5. ओदकान्तं स्निग्धो जनोडनुगन्तब्यः ॥ ७. छात्रेव तां :' भृपत्तिरन्चगच्छत्त्‌ । ८. श्रतेरिवार्थ स्टृतिरन्वगच्छत्‌ | ९- न खत्वदगच्छामि | १०. परस्तादवगन्यत ' एव । ११. कृतापराधमिवात्मानमवगच्छामि | १२. न मे बुद्धिनिश्चवमधिगच्छति | शैैहे तेस्यो- इविगन्तुं निगमान्तविद्यासू। १४- अभ्युपगतं तावदस्माभिरेवन्‌। ९७-.अन्यागतः। ई६<- सूद , ख्िर्गत्य। १९. संगच्छेते (सम्‌-+गम आत्मनेपदी है)। २०. संगच्ऋष्ब॑ संवद्ध्दम्‌॥ २१५ हद: गच्छत्ति, तिमिरमपगच्छति । २२. खगाः खमुदगच्छन्ति | २३. उपानच्छत | २४. दाशिनझु पद कौमुदी मेघमुक्तम । (ग) ७- सरलतया । ६- नाम्ना कृष्णः 1 ५. वर्षेणेक्रेन । १०- सप्तमिद्दिने




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