ओम ए हिस्ट्री ऑफ वैदिक लिटरेचर वोल.१ भाग २ | Om A History Of Vedic Literature Vol 1 Part 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर दा किए अर 7 सदी कल कदर कं बियर नव पे विन टिक नर के नर पिन पाक बा या दर समिट का ये न का कर ननन्ट न सापटगर कि 5... कमिटी मेरे अर ददमनलवनय न सु अपना डा टन टिटटन लय पर व 22 डी किजमन्यट सन ८ सन्दन् 222. रा दा पर व न ् वैदिक वाडमय का इतिहास भा० १ ख० २१ (ख) १३वीं शताब्दी का केशवस्वामी अपने नानाथाणंवर्संक्षेप भाग १ प्र० ८ पर लिखता है-- ं _ छयोस्त्वश्व तथा ह्याह स्कन्दस्वास्युक्त भूरिशः । माघवायायेस्रिश्व को अयेत्युि भाषते ॥ अर्थात्‌ दोनों लिट्टों में गो शब्द का घोड़ा अर्थ हैं । इसी प्रकार अनेक. ऋषचाओं में स्कन्दस्वामी ने घोड़ा अथ किया है और विद्वान माधवाचा्य ऋ० १८४1१६॥ में यही अर्थ करता है । (ग) १२वीं शताब्दी अथवा इस से कुछ एवं का. वेक्नटमाघव लिखता है-- साष्याणि वैदिकान्याइरायावतनिवासिनः । क्रियमाणान्यपीदानीं निरुक्कानीति माधवः ॥८॥। स्कन्द्स्वामी नारायण उद्दीथ इति ते क्रमात्‌ । चक्रः सहैकस्ग्भाष्ये पद्वाक्यार्थगोचरम्‌ ॥&॥ अथीत्‌ स्कन्द्खामी नारायण शऔर उद्दीथ ने मिल कर एक ऋग्वेद भाष्य रचा । ः स्कन्दभाष्य पहले भागों पर नारायणभाष्य मध्य भाग पर और उद्बीथ- भाष्य अन्तिम भाग पर है । (घ) लगभग ११वीं शताब्दी का उपाध्याय कके अपने कावत्यायन श्रौतसून्रभाष्य ८।१८१॥ में हरिखामी को उद्घ्त करता है । आचार्य स्कन्द- सखामी हरिस्वामी का गुरु था । इसलिंथ स्कन्दस्वामी भी दशम शताब्दी से पूर्व का अवश्य ही होगा । यदि ऋग्वेदीय सम्प्रदाय के अधिक ग्रन्थ मिल जायें तो उन से हरि स्वामी के पूर्वोक् कथन की सत्यता अवश्य प्रमाणित . होगी । वस्तुतः हरिस्वामी का अपना लेख ही उस का काल निधारित करने के लिये पर्याप्त है । अतएव इस नियत नव १ सन्‌ १६२८ की ओरिएण्टल कान्फेंस में इस प्रमाण की ओर मैंने विद्वानों का ध्यान दिलाया था । २. ऋगथदीपिका अ्टक ८ अध्याय ४ की भूमिका | कक बा अ.ण व उस्कटन् नाना एक किया नि डमार पु पक कर ८ पर पा - की कक कि वन कल लि दे अपर जल न




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