ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य - रत्नप्रभा भाषानुवाद सहित | Brahmasutra Shankar Bhashya - Ratnaprabha Bhashanuvad Sahit

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Brahmasutra Shankar Bhashya - Ratnaprabha Bhashanuvad Sahit  by चण्डीप्रसाद शुक्ल - Chandiprasad Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ९ विपय वक्त आत्मा परमेश्वर है [ सिद्धान्त ] धर प्रतिशासिदेलिड् ० १((४६।२० न उक्त श्रुत्िगत जीवोपफ्मके विपयगें आइ्मरथ्य आचायेका सत .. उत्ममिष्यत एब० १४६२१ धर चक्त विपयमें भौहुलोमि आचायका मत सर अवस्थितेरिति ० १॥४॥६॥२२ का उक्त विपयमें काशढ॒त्खा आचार्यका मत काशहत़् आचायेका मत ही उपादेय है एवेभ्यो भूतेम्य:' इस श्रुतिमें जन्म और नाश कह्दे गये हैं, ऐसा भाकछ्ठेप एवं उसका समाधान जीव और परमामाझा भेद फवछ उपाधिनिमिच्रक है, पारमार्थिफ नहीं है न भेदकी करुपना करनेवाले मतमें दोष ५५३ प्र पंक्ति ८८६९ -+ ७ 3 ८८५० ९ ८८६ + १ ८८8६-१० ८८७ ० २० ८८८०-०२ ८८९- ८ <ढ९२- ५९ ४८९५-०५ ४९८ - ५ प्रकृत्मधिकरण (४७२२-२७ [ प० ९००-९१५ ] सप्तम अधिकरणझा सार * ध् प्रकृतिश्र प्रतिशा० १॥४॥७।२३ स्ंड श्द्य कगत॒का फेवछ निमित्तफारण है [ पूर्वपक्ष ] न ब्द्म जगत॒का उपादानकारण भी है [ सिद्धान्त ] नर कुछ श्रतियोंमें कथित प्रतिज्ञा और दृष्टान्तका प्रदान रद “यतो था इसानि! इस श्रतिमे पंचमी प्रकृत्यर्थक है मर आमभिष्योपदेशाच्च श।डी७२४ कब श्रुत्युक्त चिन्तन भी आत्माफ़ो को और अकृति कहता है... साशाब्योभयाम्नानात १॥४॥७।२५ श्रुतिमें झद्यासे उत्पत्ति और अद्यामें छथ कथित है, इसलिये मद्म डपादान कारण भी है. ता आत्मकझतेः परिणामात्‌ १॥४)७।२६ ल्ब् तदात्मान! इस श्रुतिम आत्मा उमयकारण फद्दा गया है. --- योजनिश्व द्वि गीयते १/४॥७॥२७ बन श्रुतिमें बद्य योनिशब्दसे कद्दा गया है, इसलिए प्रकृति भी है ««« ९५००० ६ रृबशु न है ५०२०-०२ ९०४ - ४ ५०४ - ६ ९०७ + ने ९०९ - ६ ९०९- ९ ६१० “ है ६ १९१०-११ कट +- है. ९११ - १० ९१३ - १८ ९१३ - २६




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