बृहदारण्यकोपनिषद | Brahadaranyakopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
798
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय है ब्राह्मण २ रद
सोड्चन्नचरचस्याचत आपो5जायन्ताचेते वे मे कमभूदिति
तदेवाकस्याकेत्व॑ क॑ ह वा अस्मे भवति य एवमेतद-
कस्याज्कत्व बंद ॥।
पदच्छेदः ।
न, एवं, इह, किश्वन, अग्रे, आसात्, मृत्यना, एव,
इृदम् , आवृतम् , आखसात्, अशनायया, अशनाया, हि,
मृत्युः, तत्, मनः, अकुरुत, आत्मन्वी, स्यथाम्, इति, सः,
अचन् , अचरत् , तस्य, अचत:ः, आप:, अजायन्त; अर्चते,
वैं, मे, कम् , अमृत्, इति, तत्, एव, अकेस्य, श्र्कत्वम्,
कम् , €, वा, असम, भत्रति, यः, एवम, एतत्, अर्कस्य,
अर्कत्वम्, वेद ॥
अन्चय-पदार्थ ।
अग्ने स्ृष्टि के पहिले | इहन्यहाँ । किल्वन एचजकुछ भी।
नन्नहीं | आसाोतूलथा | इदमतच्यइह अह्मांड। अशनायया>
बुभुक्षारूप । सत्युना-सटत्यु यानी दिरण्यगर्भ ईश्वर करके । एच+न
ढी। आवृतमल्आदत था | दिज्कयोंकि। अशनायानबुआुक्षारूपी 1
सत्युप्न्स्स्व्यु ही यानी द्विरएयगर्भ | + इतिजऐसा । + ऐेंडछुतर
इच्छा करता भया कि | + अहम्रमैं । आत्मन्वीनमनवाला ।
स्यामदोऊँ । तत्-तिसके पीछे | खश्तवह | मनः मन को )
खकुरुत-डत्पज्ष करता भया। सः>फिर वही हिरणयगर्भ ।
अर्च॑नध्यान करते हुए। अचरत्-प्रकृति के परमाणु को संचालन
करता भया ! + तदाल्तब । तस्यलतिस । अर्चततस्दूध्यान
करनेवाले हिरश्यगर्स से। आप*चलजल । अज़ायन्तत”उत्पन्न
होता भया।+ तदए-तब 1+ सःूूवह दिरण्यगर्भ । इतिफ्ऐसा।
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