कठवल्ली उपनिषद् | Kathavalli Upanishad
श्रेणी : हिंदी / Hindi, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कठवन्ली उपनिषद् । ११
न विभेतिन्भयको.नष्टौ `, ; ,ˆ ` `. सीत्वौ=तेरकरफे
प्राप्त होता है शोकातिणगः-शोकसेरहित
+ अर । * होताहुआ
अशनापिपाखेल्शुधा प्नोर,पिपासा | स्वर्गेलोके-स्वगलोकर्म
उप्नेन्दोमोकी . ' मोदते-इपको पाप्त होता है
सूलस |
स त्वमग्नि स्वग्यमृष्येपि मृत्यो प्रहि त अदधानाय महप्र
स्वर्गलोका अमृतत्वं भजन्त एतद् द्वितीयेन चे वरेण ॥ १३॥
“^ .. पदच्छेद्ः।
त्वम् श्नग्निम्) स्वम्यम् , अध्येषि, मृत्यो, प्रति, वम्,
श्रदधानाय, मह्यम्, स्वर्गलोकाः, आरंतत्वम्, जन्ते, एतत्, द्वितीयेन
बणे, बेरेणं ॥
अन्वयः . , पदाथेसरदित ] अन्वयः पदाथैसटित
, ` खष्षममावाथ | - सुक्ष्म भावार्थं
श्छत्यो-हे स्यु भगवान् ! भ्रद्दधा- ! अछावाज् के
माय + लिये
न यद्षअ्गर
मनूद्य
सभ्च्वह-. र
এ ये शात्वा>जिसकों जानकर
स्वमु ইন स्वरीलोकाः=स्वगैनिवासी
स्वरत साधक , . अखुतसम्=अमरभाव को `
` @अम्निमू~खपिनि को. , - “` भजन्ते~प्रापठ हेते ছু
अध्येषिज्जानते हो. :८ ৭ “` . पतव्-इसकोः , -
+ चुतो “ . द्वितीयेन दूसरे
तमू्~उसको ५४ “ অই करके
महामत्मुरू -.. , ~ „4 .. :; -चशेन््मांगता हूँ.मैं .
सूलस्।
प्रते ब्रवीभि तदुमे निवोध स्वस्येमग्नि नचिकेतः नानं
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