बृहदारण्यकोपनिषद | Brahadaranyakopanishad

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Brahadaranyakopanishad by रायबहादुर बाबू जालिमसिंह - Rai Bahadur Babu Zalim Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय है ब्राह्मण २ रद सोड्चन्नचरचस्याचत आपो5जायन्ताचेते वे मे कमभूदिति तदेवाकस्याकेत्व॑ क॑ ह वा अस्मे भवति य एवमेतद- कस्याज्कत्व बंद ॥। पदच्छेदः । न, एवं, इह, किश्वन, अग्रे, आसात्‌, मृत्यना, एव, इृदम्‌ , आवृतम्‌ , आखसात्‌, अशनायया, अशनाया, हि, मृत्युः, तत्‌, मनः, अकुरुत, आत्मन्वी, स्यथाम्‌, इति, सः, अचन्‌ , अचरत्‌ , तस्य, अचत:ः, आप:, अजायन्त; अर्चते, वैं, मे, कम्‌ , अमृत्‌, इति, तत्‌, एव, अकेस्य, श्र्कत्वम्‌, कम्‌ , €, वा, असम, भत्रति, यः, एवम, एतत्‌, अर्कस्य, अर्कत्वम्‌, वेद ॥ अन्चय-पदार्थ । अग्ने स्ृष्टि के पहिले | इहन्यहाँ । किल्वन एचजकुछ भी। नन्‍नहीं | आसाोतूलथा | इदमतच्यइह अह्मांड। अशनायया> बुभुक्षारूप । सत्युना-सटत्यु यानी दिरण्यगर्भ ईश्वर करके । एच+न ढी। आवृतमल्आदत था | दिज्कयोंकि। अशनायानबुआुक्षारूपी 1 सत्युप्न्स्स्व्यु ही यानी द्विरएयगर्भ | + इतिजऐसा । + ऐेंडछुतर इच्छा करता भया कि | + अहम्‌रमैं । आत्मन्वीनमनवाला । स्यामदोऊँ । तत्‌-तिसके पीछे | खश्तवह | मनः मन को ) खकुरुत-डत्पज्ष करता भया। सः>फिर वही हिरणयगर्भ । अर्च॑नध्यान करते हुए। अचरत्-प्रकृति के परमाणु को संचालन करता भया ! + तदाल्तब । तस्यलतिस । अर्चततस्दूध्यान करनेवाले हिरश्यगर्स से। आप*चलजल । अज़ायन्तत”उत्पन्न होता भया।+ तदए-तब 1+ सःूूवह दिरण्यगर्भ । इतिफ्ऐसा।




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