शरत साहित्य विजया | Sarat-sahitya Vijaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हज] प्रथम भंक श्प
देखने-सुननेब्ाद्य कोइ हे नहीं। छड़क्ी मेरे पास कसी आई। पीन-चार सासका
समान बतलयी हो गदा। इसके बाद दिसीकों व्वऋर नहीं हुईं कि कद बह मैदान
कुर्क शो गया और कब नीस्ममपर चढ़ गया। अब मासम इमा तत्र चाकर मैंने
कितनी खुशामद की, हाय-पैर छोड़े। मगर इतना बड़ा बद्यात यह बूढ़ा है
कि डिसौ तरह उसे नहीं छोड़ा।
पूर्ण--क्षत्रके धरके उत्तर थ्परेर बह दो नया कपसी अ्रामका बाग सगागा
गया है, गद्दी न!
९ हा०--होँ घर, बदौ अपर बूट्के शोइकी भम्तये बरिता है।
पूण--केकिन गह तो नीम्मममें रूरौदी हुई बमीन है। इसे तो कोई छोड़
नहीं सक़ेया मैया ।
२आ«०-न छोड़ सके । इसकी भाणा मी मै नहीं करता। छेडिस बूढ़ा
ताश्म दो दिन बाद ससुर होगा कि नहीं। इसौसे करण हैँ कि समग्र रहते
सम्रके गुण-दोप योड़े बहुत मा-सक्मी सुन रख |
१ आ०--बगरीस मुरुमींय मकान मी सो सुना है, पूद्ठां इधिया
झेना जाइता है।
पूर्ण -- कयनापूसीमें गहौ दो सुन रहा हूं मेषा ।
२ हा०--ऐशा कप शो थो इस बदुछात धूद्ेषीे दाढ्ीको एक झटकेसे उस्बाड़
छे, तो मरे दृदबकी बढ्न मिटे।
पूर्--रइने दो भैया, रइने दो। राएके बौच छड़े होकर ये सइ बाते
करनेद्ी सरूणत नहीं | कोरे कई्दी मुन रुगा और बघाकर कइ देय तो मेरे
शान नहीं बचेगी |
२ आ०-नहीं जाना, इनेगा और ग्येन ! महोँ तो एमी तीन आदमी हैं।
हर बाने दो ये सदर बाऐे, देर इुई। उस्पे, भ्र धर चस्म घाव ।
पूरष--हों घर्मे मैया । सुदौर, सस्थ्बाके बाद मेरे गशें दा आना | मद
अधिड उ॒म्प नहीं है--मुम सोेगेसि छुछ सक्मद करनी होगी ।
१ जआ०--ठश्णाफ़े बाद ईी आर्ऊँगा जादा | चद्े, अब पर लब्य जाग |
( सच प्रर्षान )
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