श्रीमद बाल्मीकि रामायण | Shrimad Valmiki Ramayan

Shrimad Valmiki Ramayan by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chturvedi Dwarakaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रू: ६...) भर होना । ध्त्यन्त क्रूर शक्क के सम्पाति को देख चकित वानरों का दुः्खी होना । दु:ख प्रकंट करते समय वानरों के मुख से झपने भाई जठायु की चर्चा सुन, सम्पाति का वानरों से प्रीतिपूवंक वातचीत करना । सत्तावनवाँ सगे ५१०-५१५ सम्पाति के पूछने पर धाड्द द्वारा जटायु की मृत्यु, श्रोरामचन्द्र का बूत्तान्‍्त, सीता का दृरण, वानरों के प्राये।- पवेशनादि का विस्तार पूर्वक बत्तान्त कहा जाना । अद्वावनवाँ सर्ग प५१६-५९२४ ध्रड्दादि के दीन दुः्खी देख, सम्पाति द्वारा वानरों का सीता का पता वतनाया जाना । वानरों द्वारा सम्पाति के समुद्रतट पर ले जाये जाने पर, सम्पाति का जटाबु के लिये जलाजलि देना । उनसठ्वाँ सर्ग॑ पर४-५३० सम्पाति से ज्ञाम्ववान का यह पूं हना कि, '्यापकोा सोता के हरे जाने का पता क्यों कर मालूम है उत्तर में सम्पाति का यह वतलाना कि मुखके श्यपने पुत्र सुपाश्वं द्वारा यदद हाल मालूम दुष्ा । साठवाँ सग प५३१-५३५ फिर सम्पाति का श्यात्मवृत्तान्त निरूपण करना श्योर निशाकर मुनि के साथ सम्पाति की जा वातचीत हुई थी उसका वशन । इकसठवाँ सग प३५-५३९ “ बानरों के साथ समागम होने पर नये पर निकलेंगे ” --इसका धृत्तान्त सम्पाति द्वारा वानरों से कहा जाना ।




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