महाभारत | Mahabharat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mahabharat by महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahaveer Prasad Dwivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahaveer Prasad Dwivedi

Add Infomation AboutMahaveer Prasad Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| है: 2 कला-क्ैशल, पेश्वय्वे, प्रभुत्त और एकाविपट का इतिहास हो।, जिस ग्रन्थ में हमारे पुराने कल अहिक हम लोगों के लिए बहुत बड़े कल्नक्ू की बात ४ । हा--उसके पाठ से वच्चित रहना भारत की अन्यान्य भाषाओं में महाभारत के कितने दी अनुवाद ॥ उस आधार पर कितनी हीं पुस्तकों वन गई हैं; उसका सारांश लेकर कितने ही छाट माट प्रन्थ लिखे गये हैं। जिस उ्द का हम ठच्छ देष्टि से देखते दे उस तक में सदाभारत का एक अच्छा अनुवाद विद्यमान है। परन्तु, हाय । जिस हिन्दी का हम सारे भारत की भापा बनाना चाहते हैं उसमें इस परे प्रन्थ् का कोई सर्वादर्सुन्दर अनुवाद ही. नहीं | जिस तरह के ग्रन्थों की इस समय बहुत ही क्रम जरूरत हैं उनके लिए ते बई बढ़े प्रबन्ध किये जायें, परन्तु जिसके उद्धार विना हमारे पृर्षजां की क्रीसि के इजने का डर है उसके अनुवाद के अभाव पर खेद तक न प्रदर्शित किया जाय ! इस सम्बन्ध में हिन्दी के हिंत-चिन्तकों को मराठी भापा की “भारतीय युद्ध नामक पुस्तक को प्रस्ता- वना पढ़नी चाहिए। यह श्रस्तावना भारत की एक प्रधान राजनीतित, सम्मात्य सम्पाः दक और अद्वितीय विद्वान की लिखी हुई है | उसके पढ़ने से गालम हैो। जाबगा कि- महाभारत का महर॑व. कितना है प्रार उसके प्रचार से देंश क्षा कितने लाभ की. सस्भावना है। न दागये है; उसके ड इंडियन प्रेस की बहुत दिनों से यह इच्छा है कि महाभारत का एक अच्छा और सचित्र अ्रतुवाद हिन्दी में प्रकाशित किया जाय | इस क्वाम के लिए बहुत समय दरकार है । परन्तु काम है यह ऐसा कि जितना ही शीघ्र दे उतना ही अर्छा । देखें परे मद्ा-- भारत के एक सुन्दर और सचित्र अनुवाद के प्रकाशित होने का कब शुभ दिन झासा. है। तव तक महासारत का मूल आख्यान इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाता हेश श्रीयुत सुरेहरनाथ ठाकुर, वी० ए०, चैंगल्ा के प्रसिद्ध लेखक हैं । उन्होंने मदाभारत' का मूल आख्यान वँगला में लिखा है । किसी पुस्तक का सार खोचने में बहुत कुछ काट- छाँट करने की ज़रूरत पड़ती है। आाख्यान-लेखक महाशय ने इस क्राम की बड़ी याग्यता से किया है। आपकी पुस्तक में सह्राभारत का एक भी महत्व-पर्म खेद नही छडटने #पाठकों को यह जानकर हप होगा कि श्रव इंडियन प्रेस, लि०, प्रयाग मे पूरे सेस्कूस- महाभारत का सचित्न हिन्दी-अनुवाद निकालने का निश्चय कर लिया है। हर उसका प्रतिमास: एक श्रेक निकल्न रहा हैं। भ्रव तक ३६ अंक प्रकाशित भी हो छुके है । |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now