वाग्भटालंकार | Vagbhatallankara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भसूमिका।
अज्लीकरोति यः कात्य॑ शब्दाधोवनलड्ती
असो न मन्यते कल्मादबुष्शमनल कती ॥
इब्यमियुक्रोक्ला सालड्ारयोरव शब्दायेयोः काव्यले कव्य-श्ञानाय
कोब्य-क्रणाय आलद्भारहानं प्ररमावश्यकम्ू । एतरद्यमेव श्रीमरता बाभटेन
कवबिपरेंण पश्चपरिच्देदात्मकोउय॑ वार्भटालट्टाराए्याः प्राशछविशेदरचनः
संचेतसामाद्वादज॑ननों प्रन्थः प्राणावि । अत्र प्रग्भकृता न फेवल शब्दार्था-
छद्ठारा एवं लक्षिता उदाहताथ, अपि तु क्वित्वप्राप्तेषपाया. काव्यन्यार-
राति काब्य-युणदेश्र ययाय्थ सर्वम्पि काव्यँ-ज्ञामौषयिक्क संस्तिप्य
उक्चितए् , पश्मे काब्यात्मा रफेष्पि साज्धिय छछिते व्याहुतश्न 1 तदिद-
महत्पशरीरमपि सर्वार्धावभास्सि भ्रन्थाज्न छश्वता वाम्मटेश यासवो फलरो
सागरनित्षेप कृत ।
अस् प्रन्धस््य बर्ता श्रीदाग्भरः कविजैनप्मीनुग आसीदिति महला-
चरण॒पद्यत एवं प्रतौयते । यद्रप्पेतदुप्रन्थप्य दैष्शुवेप्यपि श्रयारात्तिडये प्रावो-
भेन केनचिदू टीकाकतो, सिंहदेवगणिनाश्रा सूरिणा, महए/चरणपर्थ विष्णु-
नमस्थरपर्तयापि व्याख्यातम् , परर्परपीतिदेदुतय/ स्तुलबायं,तस्त प्रयक्ष-
सपापि तप्॒त्यं 'श्रीनामेयजिन! पद मुए्यया दृत्त्या मगपन्तं जिन्मेव स्मारयति+
इति प्रन्धक्तुैनधर्मानुगामित्त एवं पय़रस.। श्रीसिदेदवगणिरपि स्वयं
धर्मेए जैन एवासीत् । तेनापि स्वटीकारस्से श्रीजिन एवं गुणगऐगीतः ।
अय॑ वाम्भठो 'बादड' इति आ्राहतनाज्नापि प्रसिद । अस्थ पितुर्गाम
“सोम! इन्यासीव 1 ५.
बम्गएडसलिसेपुडमुत्तिशमणिणो पद्ासमूड ब्व +
प्िरिबाइदत्ति तणओ आधि बुद्दो तत्स सोमस्स ४ [वाग्मर ४१४०]
इति सुरुणलद्चारोदाहरणत्य जिनर्षर्मसूरिक्ताया न््याख्यायाम् 'एतदू-
अम्यक्षरेण स्वगामसट्रिते संडरालडारस्पोदाइरुणं मणितम' इत्युक्म्। तन
विशयते, भय दाग्सट सस्पेमस्य पुत्र आसोद, बाइड! इिः चाध्यआइह जाम कर
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