भविष्य पुराण खंड 2 | Bhavishya Puran Khand 2

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Bhavishya Puran Khand 2 by श्रीराम शर्मा आचार्य - Shreeram Sharma Acharya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द “भविष्य पुराण' के इस द्वितीय खण्ड से अधिकाश उन मुदय घट- नाओ का वर्णव मिलता है जो पिछले एक हजार वर्ष मे हमारे देश में घटित हुई हैं। उनमें पुराणकार ने प्रधान स्थान आल्हा-अदल और पृथ्वीराज के युद्धों को दिया है। यद्यपि आजकल भारतवर्ष के कई प्रदेशों में 'आत्ह्या' का काफी प्रचार है, पर ढोलक पर गाने वालो ने घीरे-घीरे उसमे परिवर्तन करके एक निराली द्वी चीज बना दी है । तो भी उसकी मूल कथा 'भविष्य पुराण' के वर्णन से अधिकाश में मिलती- जुलती दी है । “भ्विध्य पुराण' में इस कथा को इतना अधिक महत्त्व देने से हम यह अनुभव करते हैं कि वास्तव मे आाल्हा-ऊदल तथा पृथ्वीराज का सग्राम भारतवप का भाग्य-विधायक था और उसे केवल युद्ध की एक ऊहानी या लोक-काब्य की तरह पढ लेना पर्याप्त नही । इसमे भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय सन्निहित है और उससे हमको एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सकती है ! एक अध्याय स “कबीर, नरसी, पीपां और नानक वे” पूर्व जन्मी का वर्णन देकर उनको प्राचीन युगो के प्रसिद्ध व्यक्तियों से सबन्धित॑ सिद्ध क्या है | किसी व्यक्ति के प्राचीन समय मे होने वाले विभिश्न जम्मो का वर्णन तो सच्चे योगी ही जानने मे समर्थ हो सकेते है, पर हम इतना कह सकते हैं कि जिस श्रकार आल्हान्ऊदल! के सम्राम भारतवपं की राजनैतिक परिस्थिति मे परिवर्तन उत्प्न करने” वाले थे, उसी प्रकार कबीर और नातक के प्रचार-कपर्य ने भारतवर्य के सास्कृतिक इतिहस को एक नया मोड दिया । इससे देश भे 'सत-मठ” का प्रसार




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