कुन्दकुन्द शतक | Kundkund Shatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४] [ कुन्दकन्द शतक का प्रकाशन हो चुका है। इस प्रकार विविध रूपों में यह 1 लाख की संख्या में जनसाधारण तक पहुंच चुकी है। यह संख्या इसकी लोकप्रियता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इतनी अल्प अवधि में एक लाख की संख्या में किसी पुस्तक का छप जाना बहुत महत्व रखता है। इसका अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुका है, जो प्रेस में है। अन्य भाषाओं में भी इसके अनुवाद हो रहे हैं। इसका एक संगीतमय कैसेट भी तैयार किया गया है जिसके उद्घाटन के अवसर पर ही एक हजार कैसेट बिक गए इसकी भी मांग निरन्तर बढ़ रही है। यह कैसेट भी अब तक दस हजार की संख्या में जन-जन तक पहुँच चुका है। यद्यपि आचार्य कुन्दकुन्द के मूलग्रंथों और उनकी अति गम्भीर संस्कृत टीकाओं के हिन्दी आदि आधुनिक भाषाओं के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं तथापि ऐसे कितने लोग हैं, जिन्होंने उनका आद्योपान्त स्वाध्याय किया हो? आज के इस व्यस्त युग में न तो लोगों के पास इतना समय है और न रुचि ही है, जो इन विशाल व गम्भीर ग्रंथों का गहराई से अध्ययन करें। आचार्य क॒ुन्दकुन्द की वाणी और उसमें प्रतिपादित विषयवस्त के सिहावलोकन की दृष्टि से संक्षिप्त सरलार्थ सहित यह 'कन्दकन्द शतक अवश्य ही अधिकतम लोगों तक पहुंचेगा, जिसे पढ़कर आचार्य कुन्दकुन्द के मूलग्रंथों को आद्योपान्त पढ़ने की प्रेरणा भी लोगों को प्राप्त होगी। कुन्दकन्द वर्ष में इसकी अधिकाधिक प्रतियाँ जन-जन तक पहुंचे-हमारी ऐसी भावना है, पर इस भावना की पूर्ति आत्मार्थी भाईयों के सहयोग पर ही तो निर्भर है। यदि एक-एक परिवार सौ-सौ प्रतियाँ खरीदकर अपने हाथ से उपयुक्त व्यक्तियों तक पहुंचाए तो हमारी भावना को सफल होने में संदेह की गुंजाइश ही न रहेगी। आत्मार्थी परिवारों द्वारा उठाया गया यह कदम उनकी आचार्य कन्दकन्द को सच्ची श्रद्धांजल भी होगी। डा० भारिल्ल जी ने इन गाथाओं के संकलन, सम्पादन, पद्मानवाद परलार्थ लेखन एवं व्यवस्थित क्रम प्रदान करने में जो श्रम उठाया है, उसके लिए हम उनके आभारी हैं। सम्पर्ण मद्रण व्यवस्था में अखिल बंसल का महत्वपूर्ण सहयोग रहा अत: हम उनका भी हृदय से आभार मानते हैं। अधिकतम लोग आचार्य कन्दकन्द की वाणी का स्वाद लें-इस पवित्र भावना के साथ। 1 नवम्बर १९८८ --नेमीचन्द पाटनी महामंत्री




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