योगवासिष्ठ निर्वाण प्रकरण | Yog Vasistha Nivaran Prakaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
551
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऐश
थोगवासिष्ठ के छे प्रकरणों में से अंतिम “निर्वाण प्रकरण सबसे
बड़ा है। यदि यह कड्टा जाय कि सम्पूर्ण ग्रन्थ का आधा भाग यही है तो
कोई अतिशयोक्ति नहीं । यहू जितना वड़ा है उतना ही अधिक महत्त्व-
पूर्ण भी माना जाता है। इसमें भारतीय अध्यात्म के. सभी सिद्धान्त विवे-
'नन सहित वर्णित हैं, साथ ही स्पष्ट करने वालें-विविध ; उपाख्यात भी
सम्मिलित किये गये हैं। चूड़ाला का उपाल्यान--अणिक .विस्तृत और
महत्त्वपूर्ण है। इसमें यह प्रतिपादित.किया, गया. है -कि स्त्री: को भी
अध्यात्म विद्या में प्रवेश करने और: उन्नति करने-का वैसा ही पूर्ण अधि-
फार है जैसा कि पुरुष को । इसमें गीता को कथा तक सम्मिलित कर ली
गई है और क्ृष्ण-अजुन संवाद संज्ेप में पाया जाताः है ।--गीता, में
: न जायते प्रियते वा कदाचिन्नाध्यं भत्ता, . भावतो:-वा न भूय:” और
योगस्थ: कुरु कर्माणि सद्भ त्यकत्वा धनज्ञय जैसे श्लोक- -ज्यों-कौ त्यों
पये जाते हैं। इसमें अजु न को भी विष्णु का-ही-दूसरा-अवतार ़तलाया
साया है जो अधिकांश पाठकों के लिये एक नई वात जात्त पड़ेगी ।-्गीरय
हारा गंगावतरण का उपाख्यान भी इसमें पाया: जाता है ।
* अन्त में सब का सारांश यही निकाला है।किः इस जगत- में जो कुछ
है वह ब्रह्म ही है और यह तीयों लोक ब्रह्ममय ही हैं ! मनुष्यों को जो
विविध प्रकार के सुख-दुःख के अनुभव होते हैं वे: स़व संकल्प के...परिणाम
हैं। दूसरे झव्दों में यह समस्त जयत केवल एक ,माया है,- वास्तविकता
कुछ नहीं । इसी को तरह-तरह के उपाख्यानों द्वारा सिद्ध किया गया है ।
अनेक उपर्यान तो इतते लम्बे हो गये है कि उनको पूर्वापर समझकर
याद रखना भी कठिन होता है। इससे उनको संक्षेप में; ही; ग्रस्तुत्त श्र थ
में दिया गया है और आश्मा है इससे वे पाठकों -के लिये अधिक समझ
सकने लापक सिद्ध होंगे ।
' - “अ्रकाशक
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