नाटकलक्षण रत्न कोश | Natakalakshana Ratna Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२६ ) (५४६ ) शाकाननदू[ झेगवकार ) सागरतन्दी में दा रचता को 'सन- दकार! के उदाहरणछूष मे रखा है। इसके अतिरिक्त इस रचवा का क्यत्र कहीं उह्छेख नहीं मिलता | रचमिता बादि का विवरण भी ग्रन्य के अप्राप्य होते से महौ मिल सकता । (४२ ) शर्मिछापसिणय--[ दाटक ? ) सागरनन्‍्दो ने श्रवर्तक' के पसद्धा में इसते उदरण दिया है। नादक के रचयिता ब्यदि का विशेष विवरण प्राप्त नहीं होता । (५३ ) शशिकामदत्ता--शगरनन्दी मे प्रवेशक के प्रसद्ध में ( ना०ए छ० पृ ११) इसके टृवीगजद्भु का उल्केस किया है। इससे ऐसा प्रतीव होता है कि पहूं विद्यी माटक या प्रकरण का नाम है । इपके दिएय॑ में दौर अधिक विवरण ज्ञात नहीं है । (१३ ) शंशिविलद्धास--[ प्रदेसन ) इसका नाम श्ागस्तत्दी ने ध्रद्चि- विछास दिया है परन्तु बहुहुपरिद्र ने कदादितु इसो का शिकलो नाम दिया है। झशिविल्लास के छेखक आदि के विषय में और अधिक ज्ञात नहीं है । (५४ ) हक्वारंतिक-[ भ्रस््चान ) सागरतन्दी ने इसका प्रस्यात के उदाहरण रूप मे उत्हेश कया है। इसों प्रकार भावप्रवाशन, अलुद्भारसप्रह हपा साहित्यदर्षंध में भी विवरण मिलता है जहाँ इसे 'प्र्पान! ही माना है ६ इसके फेसक भादि के विषय भें कुछ भी अधिक ज्ञात मष्ठी हो पाया । (५६ ) संत्यमामा--[ गोष्ठो ) सागरतस्दी ने ही इस रचता को गोशे के निदेशन में उद्पृत्त किया है। अन्य आपार्यों ने गोष्ठी के उदाहरण में दैदतपदनिता वा उल्लेख विमा है। घम्प्रति यह इचना भी नहीं मिरतो । भाटफछक्षणरत्कोप का प्रम्तृत संस्करण साटबरुपगररस्‍तबोएब प्रस्तुत शस्वरण पो ए० शिछ्वत द्वार उण्वादित सस्द« रघतों आधार खतावर ह्वत्नन्तररूप से पुन सम्पादित कर तैयार किया गया है जिसमे कारिशाओं की सल्या ल्गाबर घारावाहिद' रूपए में दमप एस्य में तमिसता हाई गई है। उदाहरणों पा उदरधों के सभी सन्दर्भ यधाधवय प्राप्य इस्‍्यों को देखर सावधानों थे टिसे यदे हैं। नादवछूझ-परत्लवोश मैं विपयों के विभा- गानुसारी बोई प्ृथरू से अध्याय या परिच्देद नहीं मिलते हैं तथा न ही इतने ऐोटे धतच में इसकी आवदबश्ठा ही घुंलापरन्थज्ार ने प्मझी होगी। असएग




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