अनर्घराघवम | Anargharaghavam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
530
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथमोष॒इ ] “प्रकाशटीकोपेवम् ०
22४३१७०३१-००४०० ०४०१० पतसर
न अपि कथमखो रक्षोराजस्तताप जगत्वयी
मपि कथमभूदिष्ष्वाक्ृणा कुले गरुडध्वज ।
अपि कथझूषो देव्यों वाच स्पत प्रचकाशिरे
खुचरितपरीपाक सर्वे प्रबन्धकृतामयम्॥ ७॥
तत्र तायब्निरुपयामि रूपकसमिरूपमीहशम् | ( सुहर्तमिव स्थित्वा ।
स्मरणमभिनीय । सोल्लामम् । ) अस्ति माद्नल्यगोत्रसम्भगस्य महार्यंभट्ट-
श्रीवर्धभानतनू जन्मनस्तस्तुमतीनन्दनस्य मुरारे कृतिरभिननमनधराघन
अपि क्थमिति । जपि जसो रक्षोराच ससल्राक्षसचनपत्ती रावप जगात्नयीं
ब्रिलोक्ीं कूथ तताप सतापितवात् ? अपि इच्चाझूणा सदाग्यया प्रथिताना सूर्य
चश्यरावन्यकानाम् छुले वशे गसदध्वत्त विष्णु क््थमभूत् केन श्रकारेण--रामा
स्मनाअ्वततार, अपि कथम झूपो वाल्मीकौ देय दवभाषिता सस्कृता गिर बाच
प्रचक्ाशिरे छुस्दो बद्धयागा-मना पर्येणमन् ; सर्व जयम् प्रवन्धरुताम रामातितत-
क्तत्प्रबन्धप्रगगमयशस्विनामर॒ क्वीनाम् सुझृतपरिपाक परुण्यपरिणाम , रावणरुत्तक
जगव्लतापनतदुपशमोद्देश्यकरामावतारतद्यशोयर्णनप्रयोजनकादिक विनिष्चच्दन्दी
अद्धवागवतारादि सर्व सुकप्रिश्क्तनिदानक्मेव, वथमन्यथेद संम्भवटिति ।
ह्रयोडप्यपय अश्तार्थो, 'जपि सम्भावनाशश्षशद्ञागहमसमुच्यये” इति विश्व ।
हरिणीदृत्तम् ॥ ७ ॥
निरूपयामि विचार्य निधारयामि ॥ अमिरूपम् योग्य यथोक्तगुणयोगि ।
अभिनीय-शिर उम्पादिना स्मरण नाटयित्वा
वर्धमानतनूतन्सन वर्धमानास्यविदुप पुत्स्थ । तन्तुमतीनादनस्थ सन्तु
मती नाम मुरारिसाता तन्नन्दनस्य तजुप्रस्थ। मोन्न नाम च पध्नीयात् पूजा-
चाक्य च पापंद । नाटकसयथ च यनाम गर्भनिद्िष्टलक्षणम” इति भरतोक्दिश्यात्र
मुरारिशतक््ननीनामनिद्श तहृतिप्ाशसा च॥ सत् जनघंराधय नाम नाटकस ।
यह केसे सम हो यया कि राव ने सार ससारको सनन््तापित कर दिया, यह भा कसे
सम्भव हो गया कि मगवान् विध्युने शथ्वाइवशमें जम ले लिया, और यह भो क््से
सम्मव छी गया कि वाल्मौजि के हृदयमें वाणने अपना प्रकाश फ्रैछाया ? निश्चय हो यह
सारा काण्ड सुकवियोंके पुण्यप्रतापका फल है 6 ७॥
इसाल्बि सोचता हूं कि कौन रूपक उपयुक्त होगा । ( क्षणभर रक्क्र ) ( याद करके
उल्लासके साथ ) मौदगल्यगरोज्ोत्पन्न महाकति वर्धभान भटके पुत्र ततुमती नामकझ
१ “भद्दाववे ? इत्यस्मात्यूवन् वाल्वाल्माके ? इत्यधिकविशेषणन् ।
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