प्रभावतिपरिणयम | Prabhavatiparinaya

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Prabhavatiparinaya by श्री रामचन्द्र मिश्र - Sri Ramchandra Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे थे गद नै साग्ब च देत्या सममिदुद्ुद । ते ययुर्निधन सर्द यादासीव महोदधौ गे विषम तु तंदा युद्ध दृष्ठा देवपतिहंरि । गदाय प्ेषयामास स्व रथ हरिवाहन ॥वरा दिदेश मातल्सित यन्तार च सुपर्चसमर । साम्वायेरावण नाग ग्रेपयामास चेशवर ा जयन्त रोडिमिणेयस्य सहायमददाद्‌ विश्ु । एरावणमधिष्टातु प्रवर स नियुक्तवान्‌॥ डेवपुतरद्विजो वीरावग्रमेयपराज्मौ । अनुज्ञाप्य सुराध्यक्ष बह्माण लोफभावनम ॥५ण) ध मातलिसुत चेंव गजमेंरावण तदा। देव प्रेपितदान्द्को विधिज्ञो घरकमसु॥५शा हीणमस्य तपो वध्यो यदूनामेप दुर्सति ॥ प्रवदन्ति तु नूतानि सर्वत्र तु यथेप्सितम॥ अयुन्नश् जयन्तश्र प्राप्तो हस्ये महायली। नसुराज्च्छ रजालौघविक्रम्पन्तो मणश्यतु 8 शद्‌ कार्प्णिस्टदोधाच दुब्ांयरणदुर्जय । उपेन्द्राजुत शक्रण रथोथ्य प्रेपितस्तव शा ता यन्‍ता चाय सहाय ख हरियडम टटा प्उराप्ि गए




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