शरत साहित्य श्रीकान्त | Sarat -sahitya Shrekant

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Sarat -sahitya Shrekant by कमल जोशी - Kamal Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बरुर्य पर्ष डे निषषाप हो व्ायर्ँगी । पद छोम सपों है, छानते हा | स्वर्गडर दिए नहीं-- बह मुल्ते नहीं ्यादिए। मैरी छामना है कि मस्तेफे दाद फिर आकर छन्म के कर्क । इटकै मानी रमश सकते हो ! होना या कि पानीरी बायमे कॉबह मिक गई है,--मुझे उसे निर्मल करना हौ पगा | पर आज क्रगर टछझा मूझ खोठ ही सूख सयय, तो पड़ा रह ज्यपगा मेरा अस्‍सर, पूजा संदना, रह शायगी सुनम्दा, पढ़े रहेंगे मेरे गुरदेद | “सेच्छाठे मै मरना नए बाएवी । पर मेरं क्रममान बरस्लेढा गुट कोश अगर तुमने रणा हा तो एस रिघारदों छोट दो। असर तुम डिव शागेठोर्मे पौ हँगी, पर उठे न से सदूँगी । मुछे श्यनते हो, एसकए यह बढ़ा रिया कि शो शर्ई क्रस्त दोगा टतफ पुना टश्पकी अप्रेहयामें बैठे खनेका वक्त क्षत्र मेरे पाल नी है। एवि। राण्हप्मी [7 पुस्दाण मिरा। शुनिश्चित कटोर अनुशालनक्रौ शर्म-डिपि भेशफर ठरुने एक ओरन मुझे रिश्युख नि्चिम्त बर दिया। शस श्लरीबनमें उस िपदर्म होबनेड डिए. अर ओर बुछ भएँ रहा । पर निःसंशदपूवक यह हो माप दुआ दि क्या नए कर सईगर । इर इसके बाद मुछे कग करना होग, इस शर्ेमे शाबरपमी रिहयुद चुप है। शायद उपरेशेते रत इई एक बिंदी भर िसी दिन शिसेगी, झपता शरीर मुझे दी तश्ण बरेयी | पऐेडिन इस बक्त का स्पदरुपा हो गरे है बट बहुठ ही शुम्दर है। दर बागा मशेरप तंमक्ता बस मुपइ हे आषर हारिर ऐंगे। उग्दें मरोशा दे ऋाषा हूं कि प्रिऊ बरतेदो बहरत नहीं, अशुमति मिस्पौर्मे कोई रिप्न म होगा । पर छो ब॒ुछ आा पहुँचा बइ निरिष्न अगुषाति दै ता है। रतन मारईडे एप उठने दप* और म्पेर-मुुस गए मेश, यदी इदूत है। दूसरी मोर देए६ महानमे दिद्वाएड्ना आयोजन निभ्मप है सप्सर शो खा शथा | पँदफे आप्मोद र्एडनोमिले कोर-कोइ छायद आाषर दाडिरि हो रहे रोगे, ठष्प प्रापत-इरक्ा क्रराद्दी रूददौैदां इतने रिनोतझ छा कौर मक्हया है बदले मर शुफ आदर मिथ रहा शोगा। यह स्यनत हूँ हि बदले कया बहुँगा | पर दए दात देते कया, यही रुमशमें नहीं श्यदा । उन निर्मम




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