शरत साहित्य विप्रदास साथ में सती और तरुणो का विद्रोह | Sarat-sahitya Vipradas Sath Me Sati Our Taruna Ka Vidroh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पिप्रदास श्द
एडिदासने भ्रसम्मेर्मे झाकर पूछ--“वम्दना | नाम हो सुना हुमा-्ता
मासूम होता है मामी | कर्शी शायद देखा हो, अच्छा ठएरे, भलबारमें क्या
--एक रस्बौर भी शायद--!
बात न्क्तम भी न हो प्राई कि नौकरानी शआआह््के साथ मीतर भा पहुँची
और गोसी--धहुओी, तुम बहाँ शो ! तुग्यारे कोइ काका सा ब झपनी झुड़कीफे
साथ अस्थरईसे भागे हैं। बाहर कोई नहं है, बड़े बाज सांग मौ नहींहैं।
गुमाष्ठाबीने उन वोगगोको नीचेके कमरेसे बिरागा है|”
इस घटनाकी किसीकों उम्मीद न थौ। “पऐ--%इती क्या है !?--कदते
कहते सती शघीद्ी तरइ तेखैसे कमरेसे बाहर ह्दो गई। पीऐ-पीऐ द्िजिरारा
भीयया।
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४
निर्दोष साइबी पोशाकसे भूपित एक प्रौद्ध मद्रपुर्प कुरसीपर बैठे थे और
उनके पास दी छड़ी हुई एक बीस-इक््कीस सारूक्ी छडको वीवारपर डेंगी दुई
अगड्धाजी देवीका विशाल चित्र बड़ प्यानसे इंख रही बी | उसी पोशाक विस्दुर
मैम-शादिपक जैसी न होनेपर भी, दैखकर सहसा ऐसा नहीं झ्ूगता कि बह
ग्रैमारीकी लड़की है। खासकर शरीरका रंग जिशकुछ गोरा भौर साफ वा।
अदनका गठन भौर शेइरेकौ भी अनिन्त धुम्दर | हैबरके छामने सती अभी-अमी
गषके रूप कद रही थी कि ससक्ा स्प तो सासकी नजरोंमे आबेगा, सौख
मौंखक हो मे इससे इनकार नहीं कर सकर्ठी,--सो बास्तवर्म मह बात रुच है|
बहनढ़ी तरपसे इस कपपर भटटकार या गुम्मन किया जा सकता है।
नौथेके कमरेंें पहुँचते ही रुठौने दोक देकर प्रशाम किया, बोस्यी---“मेंहसे
काका, रूदुदीके धर इतने दिनें बाद आज़िर पोबोंको घूक पड़ी !!!
सठौके काका ठठके खड़े शे गये भौर मठीशक सिरपर हवव रखकर इंसते
हुए बोष्ले--हां री बेटी, पढ़ौ | व, किस लमानेमे काकाको म्योता देकर रूबर
मिम्दाई थौ थयो मैंने इनकार डिया या | कमी कद्ा या भानेफे हिए ! छुद ही
अग्न बिना-बुस्थये आ पहचा तब बात बना रही है--पोर्जोद्ी घूक पड़ी [?-
दिड्दातकी तर नजर पड़ते ही पूछ उठे--“ये तरे कौन हैं !?
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