शरत साहित्य विप्रदास साथ में सती और तरुणो का विद्रोह | Sarat-sahitya Vipradas Sath Me Sati Our Taruna Ka Vidroh

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Sarat-sahitya Vipradas Sath Me Sati Our Taruna Ka Vidroh by धन्यकुमार जैन - Dhanykumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिप्रदास श्द एडिदासने भ्रसम्मेर्मे झाकर पूछ--“वम्दना | नाम हो सुना हुमा-्ता मासूम होता है मामी | कर्शी शायद देखा हो, अच्छा ठएरे, भलबारमें क्या --एक रस्बौर भी शायद--! बात न्क्‍तम भी न हो प्राई कि नौकरानी शआआह््के साथ मीतर भा पहुँची और गोसी--धहुओी, तुम बहाँ शो ! तुग्यारे कोइ काका सा ब झपनी झुड़कीफे साथ अस्थरईसे भागे हैं। बाहर कोई नहं है, बड़े बाज सांग मौ नहींहैं। गुमाष्ठाबीने उन वोगगोको नीचेके कमरेसे बिरागा है|” इस घटनाकी किसीकों उम्मीद न थौ। “पऐ--%इती क्या है !?--कदते कहते सती शघीद्ी तरइ तेखैसे कमरेसे बाहर ह्दो गई। पीऐ-पीऐ द्िजिरारा भीयया। व क् क् शा ४ निर्दोष साइबी पोशाकसे भूपित एक प्रौद्ध मद्रपुर्प कुरसीपर बैठे थे और उनके पास दी छड़ी हुई एक बीस-इक्‍्कीस सारूक्ी छडको वीवारपर डेंगी दुई अगड्धाजी देवीका विशाल चित्र बड़ प्यानसे इंख रही बी | उसी पोशाक विस्दुर मैम-शादिपक जैसी न होनेपर भी, दैखकर सहसा ऐसा नहीं झ्ूगता कि बह ग्रैमारीकी लड़की है। खासकर शरीरका रंग जिशकुछ गोरा भौर साफ वा। अदनका गठन भौर शेइरेकौ भी अनिन्त धुम्दर | हैबरके छामने सती अभी-अमी गषके रूप कद रही थी कि ससक्ा स्प तो सासकी नजरोंमे आबेगा, सौख मौंखक हो मे इससे इनकार नहीं कर सकर्ठी,--सो बास्तवर्म मह बात रुच है| बहनढ़ी तरपसे इस कपपर भटटकार या गुम्मन किया जा सकता है। नौथेके कमरेंें पहुँचते ही रुठौने दोक देकर प्रशाम किया, बोस्यी---“मेंहसे काका, रूदुदीके धर इतने दिनें बाद आज़िर पोबोंको घूक पड़ी !!! सठौके काका ठठके खड़े शे गये भौर मठीशक सिरपर हवव रखकर इंसते हुए बोष्ले--हां री बेटी, पढ़ौ | व, किस लमानेमे काकाको म्योता देकर रूबर मिम्दाई थौ थयो मैंने इनकार डिया या | कमी कद्ा या भानेफे हिए ! छुद ही अग्न बिना-बुस्थये आ पहचा तब बात बना रही है--पोर्जोद्ी घूक पड़ी [?- दिड्दातकी तर नजर पड़ते ही पूछ उठे--“ये तरे कौन हैं !? ड




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