श्रीयोगवासिष्ठ | Shri Yoog Vasisth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वासिएछ- ] तीथयात्रा १९
रामजीनें कहा, तव वसिष्ठजीपास वेंठेथे, तिननें भी
दश्रथकों कहा. हे राजन् ! रामजीकों आज्ञा देहु; सो
तीर्थ कर आवे; जो इनका चित्त उठ्या है; ये राजक-
मार है; इसकों साथ सेना दीजें, पन दीजें; मंत्री दीजें;
, आाह्मण दीजें जो यह दुशैनकर आवे.
हे भारद्वाज ! जब ऐसे विचार किया, तव शुभ सु-
हत्त देखकर रामजीकों आज्ञा दीनी. जब चलने लगे,
तव पिता अरु माताके चरण लगे; अरु सबकों कंठ ल-
गाई रुदन करन लगे; तिनकी मिलकर आगे चले. फेसे
चले जो लक्ष्मण आदि जो भाई हैं, ओ मंत्री ये, ति-
नकों साथ छेकर, अरु वसिष्ठ आदि जो बाह्मण विधि-
को जाननेवाले थे, अरु बहुत धन, सेना तिनकों साथले
चले, ओ दान पुण्य करत जब णहके वाहिर निकसे, तव
उहांके जो छोक थे; अरु ख्तरियां थी तिन सबनें रामजी-
के उपर फूल अरु कलीकी मालकी वर्षो करी, सो कैसी
वषों है, जेसे वरफ वर्षत है, अरु रामजीकी जो मूर्ति
है सो हृदयमें धर लीनी; इसी प्रकार रामजी उद्दांसों
चले, तहां त्राह्मण अरु निर्धनकों दान देते देते तीथे जो
गंगा, यमुना, सरस्वती, आदि देखे है, तिनमें खान वि-
धिसंयुक्त करके पथ्वीके चारों कोन उत्तर, दक्षिण, पूर्व,
पश्चिमकों दान किया; अरु चारो और समुद्वमें खान
कीये; अरु सुमेरु पवेतपर गये; हिमालय पर्वतपर गये;
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