प्राणायाम अर्थात श्वास विज्ञान | Pranayaam Arthart Swash Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इवास किया पर रघूल विचार श्ष्
झ
जब फेफड़ों में सिर को, पूरे परिमाण मे, दया मिलती
है, तब फेपल रुधिर फी सफाई द्वो नहीं होती, और कार-
घोनिक एसिड गैस द्वी नहीं खारिज किया जाता, किंतु रधिर
कुछ ऑजिसिजन भा अपने साथ ले लेता है, शोर उसे शरीर
फे अग-पत्यंगों में घ्ाँ पडुँचाता है, जद्दों उसकी आपद्यकता
होती है, और जिसके छारा प्रकृति अपना कार्य उचित रीति
से संपादन फरतो है।जवब ऑफिसजन का सपर्क रुधिर
से द्ोता हे, तो बह रुधिर के अणुओं में जुट ज्ञाता ऐे, ओर
शरीर फे पत्येफ कण, रेशे, मासपेशी और इद्विय में पहुँचता है,
उसे शक्ति देता तथा दढ और बलवान वनाता है, पुराने और
निष्फल अणुओओं की जगद नए बलवान अणु स्थापित करता
है। शुद्ध रधिर में २५ फो-सेक डा ऑकिछ जन रहती है ।
शॉक्लिजन द्वारा केचल प्रत्येक भाग बलवान ही नहीं
चनाया ज्ञाता, किंतु पाचन-शक्ति भो श्रधिकाश में भोत्तम के
शॉक्लिजन मिश्रित होने पर दो अ्रचलवित हे, और यह तभी
हो सकता है, जब रुघिर में ऑस्सिजन अधिक रहें, और
चद्द खाए हुए अन्न फे संपर्क में आऊर एक पकार की जलन
उत्पन्न करे, जिसे जठराग्नि फह सकते €४। इसलिये
आवश्यक है कि फेफड़ों ठारा ऑफिसिजन की काफी माता
प्रहण की ज्ञाय | यद्दी कारण दे कि निर्बल फेफईवालों की
पाचन शक्ति भी निर्बेल दोती है । इस फथन फे पूरे मद्दत््व को
सममने फे लिये यह स्मरण रससना चाधिए कि समम्त शरीर
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