निदान कथा | Nidaan Katha

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Nidaan Katha by भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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$ लनिदान-कथा # नमी तरस भगवतो अभरहतो सम्सा पम्बुद्धस्स निदान-कथा १--पणामगाथा , जातिकोटिसहस्सेद्दि पमाणरहित॑ हित॑। छोकरुस छोकनाथेन कत॑ येन महेसिना ॥ १॥ तस्थ पादे नमस्सित्वा क॒त्वा धम्मस्स चञ्जलिं | सट्बत्ल पतिमानेत्वा सब्बसम्मानभाजनं ॥ २॥ , नमस्सनादितो अस्स पुव्ञस्स रतनत्तये । पवत्तसरसानुभावेन भेत्वा सब्बे उपहवे ॥ ३॥ तें त॑ कारणमागम्म देसितानि जुतोमता। अपण्णकादी नि पुरा ज्ञातकानि महेसिना ॥ ४॥ यानि येसु चिरं सत्था छोकनित्थरणत्थिको ! अनन्ते बोधिसम्भारे परिपाचेसि नायको ॥ ५॥ . तानि रूब्बानि एकज्ञझ आरोपेन्तेहि सद्गहं। जातकं॑ नाम सड्ीतं धम्मसद्भाहकेहि य॑॥ ६॥ , बुद्धबंसस्स एतस्स इच्छन्तेन चिरद्धितिं। याचितों अभिगन्त्वान थेरेन अत्थद्स्पिना ॥ ७॥ असंसद्नविहारेन सदा सद्धिविहारिना । तथेव बुद्धमित्तेन सन्तचित्तेन विव््यना | ८॥ म्रहिंसासकवंसम्दि सम्भूतेव नयव्य्युना। बुद्धदेवेन च तथा भिक्‍खुना सुद्धबुद्धिना ॥ ९॥ » मसहापुरिसचरियानं आलनुभाव॑ अधिन्तिय॑ । तस्स विज्नोतयन्तसरस जातकस्सत्थवण्णनं ॥१०।॥ मदहाविहार॒वासीन॑ वाचनामगानिरिसितं । भासिस्सं, भासतो तम्मे साधु गण्हन्तु साधवो'ति ॥११॥




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