प्राचीन भारतीय इतिहास का वैदिक युग | Prachin Bhartiya Itihas Ka Vaidik Yug
श्रेणी : समकालीन / Contemporary
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.55 MB
कुल पष्ठ :
303
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्
स्प 7 डछ मा
नमन नरक की
विषय प्रवेडा
(१) वैदिक युभ का श्मिप्राय
यह बात निधिवाद है कि वेद विषव-साहित्य के सब से पुराने प्रस्थ हैं । भायें
लोग उन्हें श्रनादि, श्रपोरुषेय भ्ौर ईरवरकृत मानते हैं । शतपथ ब्राह्मण में लिखा है,
कि प्रारम्भ में केवल एक प्रजापति की ही सत्ता थी । उसने प्रजा उत्पन्न करने की
कामना की झौर इस प्रयोजन से तप किया, जिसके परिणासस्वरूप पुथिवी, भेन्तरिक्ष
झौर यू--ये तीन लोक उत्परन हुए! इन तीन लोकों को भ्मितप्त कर श्रजापति में
भ्रग्नि, बायु भ्रौर सूर्य को उत्पन्न किया, भ्ौर फिर उन दास तीन वेदों की उत्पत्ति
प्रजापति दारा की गई, झग्नि हारा ऋग्वेद की, वायु द्वारा यजुर्वद की भ्ौर सूर्य द्वार
सामवेद की ।* एक अन्य प्रसद्ध में शतपथ ब्राह्मण में ऋग्वेद, यजुबेद, सामकेद धर
झथवंवेद को “महान भूत (परमेदबर) का मिःदवसित्त कहां गया हैं ।* बेदों की अन्सः-
साक्षी द्वारा भी यह सूचित होता हैं, कि वह जो झदारीरी, शुद्ध, निव्याप, शवंव्यापक्त,
स्वयम्भू, सनीषी, परमेदबर है, जनता के लिये सब पदार्थों व विषयों का याणातथ्य रूप
से ज्ञान उस द्वारा प्रदान किया गया था ।* झार्यें चिन्तकों के भनुसार यह बथाथे शान
वेद ही हैं, जो ईदवरकृत हैं घोर जिनका प्रकादा ईश्वर ने सुष्टि के प्रारम्भ में झरिन,
वायु पर भ्रादित्य नामक ऋषियों द्वारा किया था ।
पर श्राघुनिक विद्वान वेदों के इस स्वरूप को स्वीकार नहीं करते । से उन्हें
मनुष्यकृत मानते हैं । वेदों के प्रत्येक सूक्त व ऋचा (मन्त्र) के साथ उसके “ऋषि भौर
देवताप्रों के नाम दिये गये हैं । वैदिक सूक्तों व मस्त्रों की रचना इस कऋंषियों द्वारा ही
१. “प्रजापतिर्वा5इवसप्रभ्प्रासीत् । एक एवं सोध्कासयत अहुस्यां श्रजायेयेति । सोध्ञास्यत्स
तपोध्तप्यत सस्माच्छान्लासेवानात्रयों लोका असुज्यन्त पृचिव्यन्लरिको थो: । स
इमांस्व्रीन्लोकाननमिततापे ।.. तेम्यस्तप्तम्यस्थोत्ि * ' । स॒इसानि जीणि
श्योतींव्सभितताप :. तेस्सस्तप्तेस्यस्त्रयों जेदा सजायन्नाग्नेश स्वेदों वायोयजुबद:
तसुर्वात्तासबेद: ।' इतफथय लाहाण ११।५१८११०-े
९. एवं बा झरेड्स्य सहती सूतस्प लिःदवसितमेतद्दुस्येदों मजुर्वेद: सागवेदो5्य्तो-
फ्रिस'*'*** दासपंय साहाणन १४१२।४११०
दै. क्विमेतीवी परियू: स्वय्भूमाथातथ्यतोड्यों न ब्यदधाच्छाइवती मय: ससागपः ।'
सजु्बव ४०३८
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