रोगविज्ञान ग्रंथमाला मूत्र के रोग | Rog Vigyan Granthamala Mutra Ke Rog

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Rog Vigyan Granthamala Mutra Ke Rog by भास्कर गोविन्द घाणेकर - Bhaskar Govind Ghanekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मूओोत्पत्ति विशान १३ ( (81010 ) के कोटर ( 51708 ) के समान ( आगे परमातति में विशेष विवरण ) यह पिण्ड गुत्सकों के भीतर रक्त निपीडका नियमन करता है । गुत्सकों के भीतर रक्‍त निपीड बढ़ने से निस्यन्दन अधिक होता है ओर रक्तनिपीड घटने से निस्यन्दन कम होता है | इसके साथ साथ यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि रक्तप्रवाह्द बन्द करके गुत्सकों के भीतर का निपीड बढ़ाया जाय तो निस्यन्दन कम होता है या होता नहीं । रक्तनिपीड के समान निस्यन्दन अआासतीय ( ()8170110 ) निपीड पर भी निभर होता है! जब अतिस्वेदन तथा बिसूचिका, प्रवाहिका, अतीसार , अतिवमन, इत्यादि में द्रवापहरण होता है तब श्रासतीय पीडन बढ़ने से निस्यन्दन अथांत्‌ मन्रोत्पादन बहुत कम हो जाता है । (९ नलिकागत अवस्था--निस्यन्दन होने के पश्चात्‌ यह दूसरी अवस्था प्रारग्भ होती है। इस अवस्था में नत्विकाओं के द्वारा निस्यन्दित द्रव के ऊपर निम्न संस्कार होते हैं ओर तदनन्तर जो द्वव बचता है वह मत्र होता दे । (श्र) पुनः प्रचुषण ( 10०४|४६०/)४४०० )-जैसे पित्ताशय का कार्य पित्त को संकेद्रित या गाढ़ा बनाने का होता है बैसे मतन्र नलिकाओं का काय गुत्सकों में से निस्यन्दित द्वव को संकेन्द्रित या गाढ़ा बनाने का होता है। यदि नलिकाएं न होतीं या उनके द्वारा यह काय न होता तो मतन्र की दैनिक राशि डेढ़ अस्थ ( 1,117 ) के बदले ४०-६० प्रस्थ ( ४५-६६ खेर ) हो जाती हैं। इस संकेन्द्रण शक्ति का लोप बृक्‍क काय नाश क, सवप्रथम ओर सहजोपलब्ध चिन्ह होता दे । इसके होने पर मतन्न की देनिक मात्रा बढ़ती है, उसकी गुरुता घटती है तथा दिन-रात की उसकी मात्रा के अनुपात में फक हो जाता है। श्रचूषण का यह कार्य मन्ननलिकाश्रों के प्रथम कुणडलित भाग में ही अ्रधिक होता हैं । निस्यथन्दित द्ववगत विविध द्रष्यों का प्रचूषण एकसा न होकर संवरणात्मक ( 5९०८1००४४० ) अ्रथांत्‌ विशेष दृष्टि से न्‍्यूनाधिक हुआ करता है। यह संवरण कसे होता है इसका ठीक विवरण नहीं किया जा सकता । ( आा;) प्रश्नवनण ( 5०८०८४०॥1 )-प्रथस कुण्डलकाओं से क्रव्यियी ((77९४४॥111०) जैसे कुछ द्वव्य प्रस्गुत होकर ऊपर से आये हुए निस्यन्दित द्वव में मिल्लाये जाते हैं। ये सब द्वव्य रक्तगत द्वी दोते हैं, केवल ऊपर से आटोपिका द्वारा निस्यन्दित होकर आने के बदक्ते नीचे नलिकाओं से




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