सप्तपर्दा | Samprada

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Samprada by ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चाय का प्याला हाथ में लेकर लाननिह दृप्णस्वामी के! कमरे के ऱ्दरवाजे पर जा खड़ा हुआ । वह जानता है कि बीच-दीच में बाबा साहद बाइविल के सरमन अपने-आप ही पहने लगते हैं। वह भपने माय झोर “बदन पर कायदे के प्रतुसार हाय लगाकर “ग्रामीन! कहता है 1 सचमुच ही वावा साहव कमरे में इघर-उघर चकफर काट रहे हैं झौर दाइविल पढ़े जा रहे हैं ॥ वाइविल नहीं, रृष्णस्वामी कद्रिता-पाद “कर रहे थे । 2॥६ ६ 016 2875९---॥ 15 16 ८३७5९ 9 50पॉ--- 1,८६९ 76 701 98916 10 10 ४०७, ४0७ ८13516 5191$-- जगा 1$ भा ८४४६९. जा, ॥1 10 जञीटठ 165 छू००० ०7 5०37 पीता ज्रोलि इतर 01६75 ऐप आ00४: शेक्सपरियर के 'झयिलो' में पाठ कर रहे हैं कृष्णस्वामी । स्‍भाज “रामचरन के मऊ़ान से ही 'प्रॉयेलो' याद झा रहा है। उस गुवती के साथ “बातचीत में 'ग्रॉथेतरों' की कितनी पंवितयों का प्रयोग किया था ! “लेट मी सुक ऐट योर भाइज । लुक ऐट माई फेस । पीस एण्ड बी “स्टिल |”! ये सभी “प्रॉयेलो' नाटक के संवाद हैं । “देशेन्स यू यंग रोज-लिप्ड मेड--”” इसका भी बहुत-सा हिस्सा वही से है। ये सब बातें भ्रमरीकी प्रफसर “के समझते की नहीं। भीजन-शराब-मारी-नाचरंग-हृथिया र-प्रस्त्र-दम्त्र-- इन्हें छोड ऐसी बातें समझे से युद्ध नहीं चलता 1 ठीक है, कुछ-कुछ ऊँचे स्तर के लोग भो हैं। शायद वहुत-ले कवि भी कलम छोडकर कमर में रिवाल्वर सठकाये राइफल कन्ये पर रखे झा गये हैं, पर वैसे कितने हैं ? कम-से-कम वें लोग इस प्रकार एक स्त्री को सिर पर उठाये नहीं “घूमते । पर रीना ब्राउन भी न पहचान सही । झब्द कानों में पहुँचे, पर स्मृत का द्वार नहों खुला । भ्राइचय्य नही । भाश्चर्य किस वात का ? झराब्र ने उसबी स्मृति को, बुद्ध “को, शायद सारे प्स्तित्व को, भाच्छलन कर रखा या ।




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