बंकिम निबंधावली | Bamkim Nibandhavali

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Bamkim Nibandhavali by पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हि ) | । शान ! रहकर हमने सुना कि मेघ गरज रहे है, पक्षी बोट' रहे हैं। यहाँ पर मेघके शब्द और पक्षीकरे योखनेका कानोऊे ह्वारा प्रत्यक्ष-्नान हुआ । यह खबणे- ल्द्रियका अत्यक्ष हुआ । इसी प्रकार चक्कु, श्रवण, प्राण, त्वचा ओर रसना इन पोच इन्द्रियोके द्वारा पाच प्रकारवा प्रत्यक्ष ज्ञान होता है। जायदार्णनि- कोने सनकी भी गिनती इन्द्रियोर्मे की है। जतण्व थे मामसप्रत्यक्ष भी: सानते हे । सन बाह्य इन्द्रिय नहीं हे । भीतरी ड्न्द्रियके साथ घादरी विपयका सयोग असभव है। अतएय मानसमत्यक्षसे प्राद्य विषय ही जाना जासकता । किन्तु पन्‍्तज्ञान सानस-प्रत्यक्षे ही हारा हुआ करता है । जो पदार्थ प्रत्यक्ष होता हे उसके विपयमे हमें ज्ञान होता है। किन्मु प्रत्यक्षेक प्रिना भी हमारा विषयक्रा ज्ञान सूचित होता है। में जिसके किचाड़े बद है उस कोठरीमें सोया हुआ हू इसी समय मेधका शब्द सुन पडा | इससे श्रावण-प्रत्यक्ष या श्रवणसम्यन्धी प्रत्यक्ष हुआ । किन्तु यह प्रत्यक्ष ध्यनिफा €, सेघका नहीं। मेघ यहों पर हसारे भत्यक्षका घिपय नहीं है। तथापि हमको मालूम दहोगया कि आकादमें मेव €। ध्यनिके प्रत्यक्ष मेघके अस्तित्वका ज्ञान कहौँसे हुआ ? हम पहले प्रटुत बार ठेख है कि आकाशर्मे मेघफे सिवा कभी ध्वानि पहीं होती। ऐसा कमी पहेः हुआ कि मेघ न हो और ऐसी ध्यनि सुन पडे। अत्तपुब पद दरवाजेबारों कोठरीम रहकर भी हम विना श्रत्यक्षक जान गये कि आकाश मेघ हे । इसको अनुभित्रि या अनुमान कहते हें। मेघकी *वनिको हमने प्रत्यक्ष, सुनकर जाना, ौर मेघको अनुसानके द्वारा । ' मान छो, बद दरवाजेवाली कोठरीमें अन्धकार है और उसके भीतर तुम अफ्रेले हो | इसी समय तुसने शरीरके साथ अन्य किसी सहुष्यक्रे शरीरफे . स्पर्शफा अजुभव फ्रिया । उस समय कुछ देखे बिना ही तुमने जान लिया कि. कोठरीके भीत्तर मजुप्य जाया है। वह स्पशेफा ज्ञान स्वचाका भप्रस्यक्ष है, किन्तु कोठर्रके भीतर मनुष्यका ज्ञान अजुमान हैं। उस अधेरी कोदरीमें सुम यदि जुद्दीडझे फूटकी महक पाओगरे तो समझोगे कि वहा पुष्प आदि £। यहाँ गन्ध ही पत्यक्षफा विषय हे। पुष्प अनुमानका विषय है। ५ 4




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