भारत में इस्लाम | Bharat Mein Islam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bharat Mein Islam by आचार्य चतुरसेन - Aachary Chtursen

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

Add Infomation AboutAcharya Chatursen Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
का भवन... अत फिर. कप... कलभतका न्च्ज बडज-व गपीरी लि नर डिकटघानि तार पक्के ७ कुस्तुन्तुनिया इन धर्मान्‍्ध झगड़ों का केन्द्र था जहाँ अनेक पन्‍्थ और दल बन गये थे । थे लोग परस्पर अत्यन्त घुणा-भाव रखते थे। अरब उन दिनों स्वतन्त्रता की अपरिचित भूमि थी जो भारत-सागर से लेकर शाम देश के मरुस्थल तक फैली हुई थी । यह भगोड़ों और झगड़ालू ईसाइयों का आश्रय- स्थल हो रहा था । अरब के मरुस्थल ईसाई संन्यासियों से भर गये थे और वहाँ के बहुतेरे लोगों ने उनके पन्‍्थ को स्वीकार कर लिया था । हृवश देश के ईसाई राजे जो नेस्टर धर्म को मानते थे अरब के दक्षिणी प्रान्त यमन पर अधिकार रखते थे । अरब एशिया के दक्षिण-पश्चिम कोण पर एक मरुस्थल है। इसकी लम्बाई १ ४०० मील और चौड़ाई ७०० मील है । जन-संख्या ४० लाख के लगभग है । देश भर में पहाड़ पहाड़ी ऊजड़-जंगल और रेत के टीले हैं । जल का भारी अभाव है । खजूर ही इस देश की न्यामत है । अधिकांश अरव- वासी जिन्हें खानावदोश कहते हैं किसी पहाड़ी नाले के पास ठहर जाते हैं और जब चारापानी का सहारा नहीं रहता तो अन्यत्र चल देते हैं । इस देश में गर्मी इतनी पड़ती है कि दोपहर के समय ह्रिन अन्धा हो जाता है। आँघियाँ ऐसी आती हैं कि बालू के टीले के टीले इधर से उधर उड़ जाते हैं। यदि यात्रियों का कोई समूह इनके चपेट में आगया तो उसकी खैर नहीं । कहीं-कहीं सर्दी भी बड़े कड़ाके की पड़ती है । सर्दी में वर्षा भी होती है । यही वर्षा का जल नालों और गड़ढों में संचित करके पिया जाता है । अरब के घोड़े संसार में प्रख्यात हैं । यह पशु पथरीले स्थान पर बड़ा काम आता है पर रेतीले भागों के काम की चीज़ तो ऊंट है । यह न केवल सवारी के काम आता है प्रत्युत्‌ इसका माँस और दूध भी बहुतायत से काम में लाया जाता है । लोग खजूर का गुदा स्वयं खाते और गुठली ऊँटों को खिलाते हैं । अब उनकी दशा में कुछ परिवर्तन हो गया है । बसरा नगर के नेस्टर मठ के महन्त वहीरा ने मुहम्मद को नेस्टर मत के सिद्धान्त सिखाये । इस विद्वान्‌ संन्यासी के सदुपदेश से मुहम्मद के मन में मूर्ति पूजा से बहुत घृणा हो गई । जब मुहम्मद मक्का लौटा तो वह उन्हीं ईसाई संन्यासियों की भाँति जज़ूल में कुटी बनाकर रहनें को हीया नामक पहाड़ी की एंक्र गुफा में जो




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now