मीर साहेब की ईद | Meer Saheb I Id
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.75 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे आवाज नं० २--बहन लड़का नेक मालूम होता है आवाज नं० १--सुरत पर भोलापन भी है। नवाव साहब--[चाय का घूँट लेकर] तो रात को चले होगे तुम । [बीच में बर्तनों की श्रावाज़] श्रागन्तुक--जी हाँ सुबह पहुँचा हूँ यहाँ । नवाब साहब--वहाँ बारिश का क्या हाल है ? ऑगन्तुक--कभी-कभी जब बादल घिर आते हैं तो हो जाती हूँ । अब तो तीन-चार दिन से बिल्कुल नहीं है । नवाब साहब--श्रच्छा यह लो । शायद यह पिस्ते का हलवा है या कोई नमकीन चीज होगी । तो तुमने तालीम क्यों छोड़ दी ? श्रागन्तुक--इम्तेहान में पास होने के बाद फिर मैंने सोचा कि श्रम कुछ भ्ौर किया जाय । नवाब साहुब--ठीक हूँ ठीक है । उयादा पढ़ने से भी सेहत ख़राब होती है । यह उम्न श्रीर यह ऐनक तौबा तौबा मैं तो श्रव तक चाँद की रोशनी में किताब पढ़ सकता हूँ । श्रागन्तुक--जी हाँ। झावाज नं० १--बस बातों में लगाये हुए हैं ग़ररीब को । ने कुछ ख़िलाते हैं न पिलाते हैं । झ्ावाज़ नं० २--वह खुद ही छूई-मुई बने हुए हैं । जरा शेखो तो दाल-सोठ का एक सेव उठाया हूँ । झावाज़ नं० १--क्या बुरी लगती हैं ये मुडी हुई मुरछे भी झ्ावाज़ नं० दो--अ्रच्छा-खासा मुह तबाक़र-सा होकर रह गया है । [बीच में बर्तनों की झावाज नवाब साहब--भई मेरी तबियत तो तुमसे मिलकर बहुत ख़ुदा हुई। जो तारीफ़ सुनी थी उससे बहुत फ्यादा बेहतर पाया । यानी दाभ क्यों रोक लिया । यह लो यह केक ताफ़ा हैँ । झकान्दुक--भ्रावाथ घ्रजें ।
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