किले की रानी | Kile Ki Rani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kile Ki Rani by गंगाप्रसाद - Gangaprasad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गंगाप्रसाद - Gangaprasad

Add Infomation AboutGangaprasad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
किले की रानी श्घ से डूबता उतराता हुआ किसी तरह में तो किनारे था 'लंगा _ छेकिन अफसोस ! कर्नल की जवान और खूबसरत जोरू और. : उसके छोटे बच्चें तथा भंशफियों से भरे सन्दूक का कहीं यता न लगा । उसी वक्त मील में ज्ञाल डलवाये पर कुछ काम न निकला । कि पर फ्लोरा का यह सुन कर बहुत दुगख हुआ । अभी तक तो. अन्धियारी ने झील और पहाड़ी के ट्ूश्य का छिपा रकक्‍खा था, लेकिन यकायक निकंल आने वाले चांद की रुपदठी चांदनी ने अब चारों तरफ रोशनी कर दी । भद्दी चींजें भी इस खुहा- चनी रात में अच्छी लगने लगीं । भी छ पर जो चांद का अक्स पड़ा तो कुछ अजब रह दिखाई देने लगा । पानी की हूलकी लहरें जो हवा के कारण लहरा रही थीं चांद की रोशनी पड़ने से ज़गमगाने लगीं । मिष्टर कोटलैण्ड ओर फ्लोरा ने जो. आंख उठा कर देखा तो मकौल में डांगी पर एक आदमी खड़ा दिखाई दिया । चांद की उजियाली में दोनों ने उसकी. सूरत भी अच्छी तरह देख ली । वह एक खूबसूरत और नोजवान आदमी था । मिष्टर कोर्टठेण्ड ने उ तका पहिचान कर कहे, - कोर्ट» । भाह ! यद्द तो वद्दी घीमर है जो बहुत दिनों से. मछली वालों के गांव में रहता है। क्या यही उस सन्दूक को. निकालना चाइता है? लेकिन यह उसका दाल कया जाने । गज परमिलकररट वश सा वन ही कस हु न ज




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now