अमोल - सूक्ति - रत्नाकर भाग - १ | Amol Sukti Ratnakar Part- I

Amol Sukti Ratnakar Part- I by कल्याण ऋषी - Kalyan Rishi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) एक सुंभाषित वेंचंन , ने प्रताप॑ के विंसल यश को मलीन दोने से 'बचा लिया और प्रताप को सदा के लिए स्मरणीय वना दिया । व्पपनी पत्नी के 'अन्घ-फ्रेस मे पागत्व वने हुए सदन कवि जुलसीदास को भगवदूभक्ति की ओर सोड़ने वाला कौन था ? उनकी पत्नी के मुख से निंकला हुआ एक सुभापित दी तो ! उसी एक सुभाषित ने तुलसी के रॉसा-प्रेस को रांसं-ग्रेस के रूप से परिणुत कर दिया दौर उसी के फल-स्वरूप रामायण जैसे असर काव्य की सृष्टि हुई । ग्छोक्वॉत्तिक ्यौर अप्सदस्त्री जैसे जैन दे्शनशास्त्र के 'स्यन्त प्रौढ़ अन्थों की रचना करने वाले श्रचरण्ड तार्किक स्वामी विद्यानन्दि को जिनेन्द्र देव का भक्त वनाने का श्रेय एक सुभाषित को दी है। झान्यधानुपफत्व॑, यत्र तत्र घ्रयेश किस ४ । नान्यथानुपफचत्व॑, यत्र तन त्रयेण किस ४ ही इस एक 'ही खुभापित को सुनकर किद्वंद्र विद्यानन्दि जैनधर्म मे दीक्तित हो गए व्मौर उनकी छृत्तियो ने जैन दाशनिक साहित्य को सजीव वर्ना दिया । वास्तव में सुभाषित वाक्य मे अपूबे शक्ति होती है । वह सींघा हृदय से जाकर टकराता है और मनुष्य के जीवन में 'ाद्भुत परिवत्तेन कर देता दै । यद्दी कारण है कि कविजन भुक्त कंठ से सुभभपित-बचलन की प्रशसा करते हुए थकते नद्दीं है । सुभापित वचन की एक वड़ी विशेपता तो यद्द है कि वद्द मघुर होकर भी असर कारक होता है । उसकी मघुरता के विपय में कद्दा गया है -- द्राच्ा स्लानसुखी जाता, शर्करा चाश्मतां गता 1 सुभाधितरसरयाये, सुधा सीता दिव॑ गता पा




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