वनौषधि - निदर्शिका | Vanaushadhi Nidarshika

Vanaushadhi Nidarshika by राम सुशील सिंह - Ram Sushil Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अखरोट 1७ सूतरोमश होती हैं । पत्रक-संख्या में ५-१३ लम्वाई में ७.४५ सें० मी०् से २२९ सें० मी०.या डेप इंच चौड़ाई में श्से १० सें० मी० या २०४ इंच अण्डाकार-आयताकार और सरल धार वाले होते हैं। पुष्प एक लिखी होते हैं । नर पुष्प ४ से १९.४५ सें० मी० या २-५ इंच लम्बी हरित वर्ण की सलम्य संजस्यों ((क//0४) में निकलते हैं स्त्री पुष्प (१-३) शाखाओं पर पत्तियों के अभिमुख निकलते हैं । बाह्मकोश ४ खंडयुक्त तथा दलपत्र संख्या में ४ तथा हरिताभ वर्ण के होते हैं । पुकेशर १०-२० होते हैं । फल लगभग ४ सें० मी० या २ इंच लम्बे गोलाकार सदसफल के आकार के तथा हुरित वर्ण के होते हैं इनपर जगह-जगह पीत लिन्दुसे होते हैं । फलत्वचा चामिल एवं सुगंधित । गुठली (एफ) १-१॥ इंच लम्बी रेखायुवत कड़ी एवं दो कोष्ठों वाली गिरी घूसर-श्वेत टेढ़ी-मेढ़ी रूपरेखा में मस्तिष्क जैसी तथा पृष्ठतल्‌ पर दो खंडों में विमवत-सी खाने में स्वादिष्ठ और अन्य गिरियों की भाँति इसमें मी काफी स्नेहांश पाया जाता है । वसन्त में पुष्प तथा शरद में फल आते है । . उपयोगो अंग - गिरी (मज्जा) तेल (अखरोट का तेल) । सान्ना - गिरी-११.६ ग्राम से २३ ग्राम या १ से २ तोला । तेल-३ ग्राम से ११.६ ग्राम या है माशा से १ तोला । संग्रह एवं संरक्षण - फलमज्जा (गिरी) को मुखवंद डिब्वों में अनाईं-शीतल स्थान में रखें । तैल को मुखबंद शीशियों में शीतल एवं अँघेरी जगह में संरक्षित करता चाहिए । संगठन - अखरोट में ४० से ४४% तक स्थिर तैल पाया जाता हैँ । इसके अतिरिक्त इसमें जुगलेंडिक एसिड (वां बयंव) एवं रेजिन (राल) आदि भी मिलते हूं। फलों में ऑवजेलिक एसिड पाया जाता है । चोर्पकालावधि । गिरी-र वर्ष । तैल-दीघकाल तक । स्वभाव । गुण-गुरु स्तिग्व । रस-मवुर। विपाक-मसधुर । ची्य॑-उप्ण | कर्म-वातशासक कफपित्तवर्धक मेध्य दीपन स्नेहन अनुलोमन कफनिस्सारक वल्य वृप्य वूंहण । इसका लेप--वर्ण्ये कुप्ठध्न शोथहर एवं चेदना स्थापन । गिरी या मज्जा त्तथा इससे प्राप्त तैल को दि कर अखरोट के शेप अंग संग्राही होते हैं । भखरोद के .तेल का उपयोग वादाम के तेल की तरह किया एवं गुठली तथा गिरी का अगर जा सकता है गुठली या छिलके का भस्म दंतमंजन चूर्णों में डालते हैं। रकताशं में उक्त भस्म का मौखिक सेवन करने से यहू रक्‍्तस्राव को रोकता है । यूनानी मतानुसार अखरोट द्विंतीय कक्षा में उप्ण एवं तृतीय में तर हैं । यह ताजे बादाम से अधिक गरम है। अखरोट की गिरी उत्तमांगों को विशेषकर मस्तिष्क को वल प्रदान करती है । इसके अतिरिक्त यह बुद्धि एवं मन आदि अन्तन्ञनिन्द्रियों को भी पुप्ट करती तथा वाजीकर मुदुसारक विलयन एवं लेखनीय होती है । अखरोट को अधिकतया वाजीकर योगों में समाविप्ट कर उपयोग करते हूँ । भुना हुआ शीतकास में उपकारी बताया जाता है । अदित पक्षाघात एवं आमवात आदि व्याधियों में इसका बाह्यांतरिक प्रयोग किया जाता है । ताजी गिरी को पीस कर लेप करने से ब्रणचिह्न मिट जाता है और मुँह पर मलने से चेहरे की झाई दूर हो जाती है । अखरोट का तेल बादाम के तेल की भाँति उष्ण एवं दोपादिविलयन है तथा शीतप्रकृति एवं शीत- . ब्याधियों एवं तज्जन्य वेदनाओं में उपयोगी होता है । अहितकर-उण्ण प्रकृति को । सिवारण-सेव एवं सिकंज- वीन । प सुख्य योग - हब्वुल जौज । अगर (अयुरु) चाम । सं०-अगुरु क़मिजग्थ लोह । बं०-अगरु । हिं०- म० गु० -अगर। अ०-ऊद। अं०-एलो बुड (८410४ क्र००) ईगल वुड॒ ( सब ०० ) 1. ले०-आॉँववी- ल्लारिआ आगाल्लोचा (दवा दकरीणिद्टचरिव कर. । वानस्पतिक फुल - अगुर्वादि-कुल ( थीमेलासीई-72226/2- दह्यह 1 प्राप्तिस्थान - आसाम बंगाल पूर्वी हिमालय प॑त्त खसिया पवत्त भूटान सिल्हट टिपेरा पहाड़ी मतैबान पहाड़ी ... मलावार मलयाचल और मणिपुर तथा दक्षिण प्रायद्वीप .. मलक्का और मलाया दीप । इनमें सिल्हुट का अगर . सर्वोत्तम होता है । संक्षिप्त परिचय - इसके सदाहरित ऊँचे-ऊँचे वृक्ष लगभग १८.२ मीटर से ३०.४८ मीटर (६०-१०० फुट) होते हैं जिनके काण्ड-स्कन्ब का घेरा १.२४ मीटर से २-४३ मीटर या ५-८ फुट तक काण्डत्वक्‌ या तने की




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