कव्वे और काला पानी | Kavve Aur Kala Pani

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Kavve Aur  Kala Pani by निर्मल वर्मा - Nirmal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झौर भीतर कुछ भी नहीं होता। लेकिन यह दूमावा और दिनों की तरह मही था। यह रुका नहीं, इसलिए अन्त में मुसे ही रूकना पडा / इस बार कोई शक नहीं हुआ । सचमुच कोई चीख रहा था, “स्टॉप, स्टॉप* ' 1 मैने पीछे मुड़कर देखा, लडकी खडी होकर दोनो हाय हवा मे हिला रही थी । सच ! मैं किर पकड़ा गया था--दोदारा से। बेवकफों की तरह मैं उसवी जमीन पर चला आया था, चार पेड़ो से घिरा हुआ। इस बार माँ ओर बेटी दोनो हँस रहे ये । थे झूठी गर्मियों के दिन थे । ये दिन ज्यादा देर नहीं टिकेंगे, इसे सब जानते थरे। लायब्रेरी उज़ाड रहने लगी । मेरे पड़ोसी, बूढ़ें पेंझनयाफ्ता लोग, सब धाहर घूप मे बैठने लगे। आकाश इतना नीला दिखायी देता कि सन्दन की घुन्ध भी उसे मैला न कर पाती। उसके नीचे पार्क एक हरे टापू-सा लेटा रहता। ग्रेठा (यह उसका नाम था) हमेशा वहाँ दिखायी देती थी। कभी दिखायी न देती, तो भी बेंच पर उसका बस्ता देखकर पता चल जाता कि वह यहीं कहीं है, किसी कोने मे दुवकी है । मैं थचता हुआ आता, पेड़ो से, झाड़ियों से, घाम के फूलों से। हर रोज यह कही-न-कहीं, एक अदृश्य भगानक फन्‍्दा छोड़ जाती और जब पूरी सतकंता के बावजूद मेरा पाँव उसमें फँम जाता, तो वह बदहबास चीखती हुई मेरे सामने आ खड़ी होती। मैं पढ़ड लिया जाता । छोड दिया जाता | फिर पकड लिया जाता**'1 यह सेल नही पा । वह एक पूरी दुनिया थी । उस दुनिया से मेरा कोई बास्ता नहीं था--हा्लां कि मैं कभी-कभी उसमे बुला लिया जाता या। ड्रामे में एक ऐक्स्ट्रा की तरह। मुमे हमेशा तेयार रहना पडता था, क्योकि वह मुझे किसी भी समय बुला सकती थी ) एक दोपहर हम दोनों बेंच पर बैठे ये, अचानक यह उठ घड़ी हुई । “हुलो मिसेज टामस्त*1 उसने मुस्कराते हुए कहा, “आज आप बहुत दिन बाद दिखायी दो --यह मेरे इण्डियत दोस्त हैं, इनसे मिलिए |” मैं अवाफ्‌ उमे देखता रहा 1 वहाँ कोई न था। “आप द॑ढठे हैं? इनसे हाथ मिलाइए 1” उसने मुझे कुछ झिड़कते हुए दूसरी दुनिया / 25




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