मुद्रा - शास्त्र | Mudra Sastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.61 MB
कुल पष्ठ :
347
श्रेणी :
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No Information available about श्री प्राणनाथ विद्यालंकार - Shri Pranath Vidyalakarta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कप उसका शंतर्रा्ट्रीय संबंध अन्य कारणों से ढीला पड़ते दुए भी सुद्दा-रूपी बंधन से जकड़ा रहता । मुद्दा-प्रशाली का झार्थिक स्वतंत्रता में भी बड़ा अंश है। राजनीतिक तथा व्यावसायिक खतंत्रता में मुद्रा ने जो छाप लगाई है वह भुलाई नहीं जा सकती । खर देंडीमेन ने ठीक लिखा है कि रीति-रिवाज तथा लोक-प्रथा के स्थान पर मौद्रिक ब्यवद्दार का प्रारंभ होते ही सभ्यता बहुत शीघ्रता से बढ़ी । सुद्दा के मयोग से राज्य-कर तथा मालगुजारी का देना सुगम हो गया । शारीरिक दासता लुप्त होकर मजदूरी के रूप में प्रकट हुई । झर्धदास रुपयों में मालगुजारी देकर ताह्लुकेदारों की अनुचित हुकूमत से छुटकारा पा गए । महाशय निकल््सन ने लिखा है कि मध्य युग में मुद्दा के बढ़ ते ही बहुत से सामाजिक संशोधन इुए#। रुपयों में दिसाव किताब कर किसान ताझुके- दारों की दासता से मुक्त हो गए । युरोपीय नगरोँ ने रुपया इकट्ठा करके ताह्ठकेदारों के प्रभुत्व को चकनाचूर किया मासिक बेतन पर सिपाहियाँ को नौकर रखकर झात्म-संरक्षणु का मागे निकाल लिया श्र श्रपनी खतंत्रता को सुरक्षित किया । रुपयों में मालगुजारी देना शुरू होने पर स्वेच्छाचारी राजाओं ने मालगुजारी बढ़ाना प्रारंभ किया । इस स्वेच्छाचार को नछ करने के लिये जनता सघटित हुई । धीरे घीरे युरोप में खोक- द लिकरसन लिखित--मनी ऐयड मानिटरी प्रासम्त। पश्चम-संस्करण |
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