शासनपद्धति | Shasanapaddhati

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Shasanapaddhati by श्री प्राणनाथ विद्यालंकार - Shri Pranath Vidyalakarta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) था कि जो व्यक्ति उन्हें हानिकर माठम पड़ता था उसे वे 'दे्दत्याग” का दंड दे देते थे जिससे वह एथेस को छोड़ कर अन्यत्र कहीं बस जाता था। सारांद यह है कि प्रजास- त्तात्मक राज्य वहीं सफढता से चढ सकता है जहाँ राष्ट छोटा हो, उसके नागारिक आचार विचार में समुन्नत तथा रू री च् दृढ़ हों, उनका जीवन सादगी से परिपूण हो तथा उनमें समानता का सिद्धांत काम कर रहा हो | आजकल प्रजासत्तात्मक राज्य का चिह्न यदि कहीं मिछ सकता है तो वह केवठ स्विट्जढेंड में है । प्रायः अन्य सभ्य देशों में प्रतिनिधि-सत्तात्मक प्रातानिधि-सत्तात्मक राज्य। राज्य का ही प्रचछन हे । प्रतिनिधि- सत्तात्मक राज्य के भी सफलता से चढ सकने के ढिये जनता में विशेष विशेष गुणों की आवइयकता होती है । प्रतिनिधि-सत्ताटमक राज्य की अनिच्छुक, शासन- भार से घबड़ानेवाढी, उदासीन तथा आउस्य से परिपूण जनता में यह शासनपद्धति समुचित विधि पर नहीं चछ सकती है । मिल महादशय ने लिखा है कि कई जातियों का यह्द विचित्र स्वभाव होता हे कि वे शासकों के आत्याचार को चुप चाप सदन कर छेंगी परंतु उसके विरुद्ध आवाज कभी भी न उठावेंगी । ऐसी जातियों भें यदि यह शासनपद्धति प्रचछित कर दी जाय तो यद्दी परिणाम होगा कि वे अद्याचारी दासक को दही अपना शासक चुना करेंगी । स्थानीय प्रेम या मतमतांतरों के प्रेम से परिपूृण संकुचित विचारवाढी




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