शासन पध्दति | Shasan Padati

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Shasan Padati by श्री प्राणनाथ विद्यालंकार - Shri Pranath Vidyalakarta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) प्रजासतचात्मक राज्यवाली जाति में शासन की अपेक्षा सखतंत्रता का प्रेम बेशक अधिक होता है । एथेसबालो ने शिल्प में जो पृणैता प्राप्त की धी, उसमें उसकी स्वर्तत्रता ही काम कर रही थी । प्रजासत्तात्सक राज्य में समस्त जाति स्वं रपये श्राप सीधी शासक होती है । जातीय सभा द्वारा जनता खयं उपस्थित होकर श्रपने शासन का कायं स्वयं ही करती है। परु यह वहो हि सकता है जहां राष्ट्र बहुत छोटा हो । बड़े दड़े राष्ट्रों में इस शासन-पद्धति को प्रचलित करना बहुत दी कठिन है । प्रजासत्तारमक राज्य में एक दूषण यह भी है कि योग्य योग्य व्यक्ति प्रजा को श्रपनी डँगलियां पर नचाते हुए उसकी संपूर्ण शक्ति अपने हाथ में ले लेते हैं। इससे जा दानि पर्हचती हे. उद यूनान के इतिदास से सर्वधा स्पष्ट है | धुसीडाददीज्ञ ( 110९१११० ) ने एक वार कहा था-- य्रजादत्तात्मक राज्य की श्रालेशचन ^ 1167015 एप३ ६.व67106ादठ़ 1 1181116, [पं दपर उट 11 ४५६ पातृ (16 उपो ग € 18४ ग 105 एंप्रिंडहा 5, (8५८ 1९९1068 7-69). अर्धात्ति-“एथघेंस में प्रजासन्तात्मक राव्य ता नास सात्र का था, वास्तव में वहाँ उसके नागरिका मसे मुख्य नागरिको का ही राज्य घा” |. अत: प्रजासत्तात्मक राज्य को सफलता से चलना सकने के लिये प्रजा का श्राचार तथा विचार वहुत




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