दुग्ध - गुण - विधान | Dugdh -gudh- Vidhan

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Dugdh -gudh- Vidhan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) उस लीलामय भगवान की कारीगरी से लतीफ घोर संस्वाद हो जाता है। दूध की. आवश्यक्ता । के», गत ए्रों में हमने देद्यों और डाक्ट्रों के दोनों पन्त के दिचार अड्ति किये हैं, किन्तु घ्पनी घोर से कोई फेसला नहीं दिया, घ्यौर नाहदी हम इस संकट में पड़ने की धघ्यावश्यक्ता ध्यचु- भव करते हैं । क्योंकि दूध चाहे रुघिर से बना हो या घास से; हमने तो यह देखना हे कि इसके पान करने से मदुष्य शरीर पर : कया प्रसाव होता है । दूध की मडुप्य को आदश्यकता है भी कि नहीं । झऔौर बस ! श्यौर यही हमारा चिपय है । यह सर्द सग्मत यात है कि स्वास्थ्य झो तम्दुयस्ती के लिये लाइम सटूसा ) पक ध्यत्यावश्यक वस्तु हूं । यदि शरीर में चूना प्रयाप्त मात्रा में न पहुँचे तो सांस शरीर धीरे-धीरे निर्गल होकर नाकारा हो जाता है।. क्योंक्धि पिना न्यूने के मस्तिष्क तन्दु्सों; छिराध्यों और घ्पस्तियों का पोपण नहीं हो सकता । इसके छार्तिश्क्ति झन्तडियों की गति संचालन के लिये चूना ( लाइम ) पक अनिवाये वस्तु है। चयूने की सद्दायता से ही झामाशय में पाचक रस उत्पन्न होता है, योर इसी के प्रताप से सून का श्ग्लख दूर होता है। दुग्ध में लाइम की माला, झपेशाकत सबसे अधिक है । इसलिये दुग्घपान वरना परमावध्यक हद । माइपा घर




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