भारतीय संगीत की कहानी | Bharatiya Sangeet Ki Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संगीत की कहानी श्प्र दालियाँ, दो प्रधान भेद, हैं । मागे या क्लासिकल संगीत किसे कहते हैं ? इसका प्रारम्भ वेदिक काल में हो हो गया था । श्रौर भ्रपने हजारों साल की प्रगति में यह संगीत-शली श्रपनी श्रनोखी स्वर-साधना द्वारा एक श्रनोखी दोली बनाती चली गई । इसका विकास विदोष रोति से विश्षेष राग श्रौर भाव-सम्पदा से हुभ्रा । इसकी श्रपनी रीति हुई, श्रपने स्वर, लय, ताल, राग हुए श्रौर यह कठिन ध्वनि-प्रयोग को साधना से सुखरित हुभ्रा। इसके श्रपने नियम बने श्रोर श्रपने हो व्याकरण के श्राधार पर यह गाया श्रौर समभता जाने लगा । इसके नियमों श्रादि के कितने ही ग्रन्थ बन गये जिनके श्रवुकूल चलने से इसका नाम शास्त्रीय संगीत पड़ा। जिन दास्त्र-प्रन्थों से इसकी काया सिरजी गई उनमें से कुछ, जो श्राज भी उपलब्ध हैं, के नाम हे--ुनाटदय-दास्त्र, नारद-दिक्षा, संगीत-रत्नाकर व... निकाय राग-तरंगिरणी, संगीत-दपंरा, संगीत-पारिजात, नगमात-ए- श्रासैफ़ो, संगोतराग-कल्पद्र म, श्रौर संगीत-पद्धति । संगोत या गायन भी श्रोर कलाश्रों की ही तरह प्रयोग- प्रधान है । इससे यह न समभना चाहिये कि इन ग्रन्थों के ग्राघार पर हो यह क्लासिकल या मागं-संगीत बन गया । प्रयोग पहले होता है शास्त्र या सिद्धान्त पीछे बनता है । प्रयुक्त कला के श्रध्ययन से हो उसके नियम-उपनियम बनते




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