राजा भोज | Raja Bhoja

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Raja Bhoja by श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ - Shri Vishweshwarnath Rau

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजा भोज का वंश थ पर वसिष्च की खी अरुन्धती रोने लगी'। उसकी ऐसी अवस्था को देख मुनि को क्रोघ चढ़ छाया और उसने अथव मंत्र पढ़ कर श्राहुति के द्वारा अपने 'अभिकुंड से एक वीर उत्पन्न किया । वह बीर शत्रुओं का नाशकर बसिधष्च की गाय को वापिस ले आया । इससे प्रसन्न होकर मुनि ने उसका नाम परमार रक्‍्खा ओर उसे एक छत्र देकर राजा बना दिया । घनपाल नामक कवि ने वि० सं० १०७० (इ० स० १०१३) के करीब राजा भोज की आज्ञा से तिलकमज्री नामक गद्य काव्य लिखा था । उसमें लिखा है* :-- ाबू पव॑त पर के गुजर लोग, वसिष के 'अभिकुंड से उत्पन्न हुए और विश्वामित्र को जीतनेवाले, परमार नामक नरेश के प्रताप को अब तक भी स्मरण किया करते हैं । गिरवर (सिरोही राज्य) के पाट नारायण के मन्दिर के वि० सं० १३४४ (इ० सं० १२८७) के लेख में इस वंश के मूल पुरुष का नाम. कन्या नबननन कप बाय अत नल नव सजा नशा पहीगकशीगाणणाशगुााणता उत्पन्न होने के स्थान पर वसिष्ट की मन्दिनी गाय के हुंकार से परहव, शक यवन, दि म्लेच्छों का उत्पन्न होना लिखा है :-- तस्या इुंभारवोत्सछाः पल्दवाः शतशो नप ॥१८॥ घर फ्ड घट भूय पएवासजदुघोराच्छकान्यवनमिश्रितान्‌ ॥२१॥ ं ( वास्मीकीय रामायण, ममण सगे ४१ ) * इस कवि का पूरा हाल गे झन्य कवियों के; इतिहास के साथ मिलेगा । र वासिष्ठेस्म छतस्मयो वरशतैरस्त्यग्निकुराडोद्भवो । * भपालः परमार इत्यमिधया ख्यातो मद्दीमराडले ॥ शच्याप्युदतदषगद्दगिरो गायम्ति यस्यावुंदे । विश्वामित्रजयोज्कितस्य भ्रुजयोविस्फूजितं शुजंराः ॥३&॥




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