किसान सभा के संसार | Kisan Sabha Ke Samsara

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Kisan Sabha Ke Samsara by स्वामी सहजानन्द सरस्वती - Swami Sahajananda Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे एलिंखा है. मगर '१८७५ के बाद यह संगठन धीरेनघीरे. सभा का: रूप लेता प्दे १६२०में मालाबार में; दालांकि वह भी टिक नहीं पाता! उत्तर श्रौर पूर्व बंगाल में नील वोने वाले किसानों का विद्रोह भी इसी :सुद्दत में श्राता है । बिहार के छोटा नागपुर का. टाना भगत श्रान्दोलन भी झसदयाग युग के ठीक पहले जारी हुआ था | १६१४ में चम्पारन में 'िचहे गोरों के ।वरुदद गांधी जी का किसान-ग्रान्दोलन चला और सफल ुद्ा झ्रपने तात्कालिक लक्ष्य में । गुजरात के -खेड़ा जिले में भी उनने +किसान-श्रान्दो्लन इससे पूर्व उथी साल चलाया था | मगर वह श्रधिकांश :विफल रहा । अवध में असहयोग से पदते १६२० म॑ बाचा रामचन्द्र के “नेतुस्व में चाल्लू किसान-्रान्दोलन वहाँ के 'ताल्लुकेदारों के विरुद्ध था, (जिसमें लूट-पाट भी हुई । इस प्रकार के श्रान्दोलन मुल्कों में जहाँ-तहाँ और भी चले । ' मगर उन पर विशेष्र रोशनी डालने का श्रवसर यहाँ -नहीं है । मट ्ललि इनका निष्कष ; इनकी विशेषता असहयोग युग के पूर्ववर्त्ती श्रान्दोलनों की विशेषता यह थी कि एक तो पे श्रधघिकांश, झ्संगठित थे । दूसरे उनको पढ़े-लिखे लोगों का नेतृत्व प्रात न था। अवध वाले में भी यद्दी बात थी । तींसरे उनने मार-काट का श्राश्रय 7लिया । तब तक जनान्दोलन का रहस्य किसे पिदित था ! यह भी बात ' थी “कि ये विद्रोह और आन्दोलन पदले से तैयारी करके किये न गये थे । जब किसानो पर होने वाले जुल्म व्यसद्य हो जाते थे और उन्हें श्रपने चाण 'का कोई दूसरा रास्ता दीखता न था तो वे एकाएक उचल पड़ते थे। फिर तो सार-काद श्रनिवाय थी । परिस्थिति उन्हें एतदर्ध विवश -करती “थी नया यों कदिये.कि जर्मीदार झर शोषक अपने घोर जुल्मों के हार उन्हें इस हिंसा के जिये दविवश करते थे । यही उनकी -कमजोरी थी । इसी से ' .बेः्दबा रिये गये और विफल से रहे; हालांकि उनका 'वुन्दर परिणाम किसानो के लिये: होकर रहा, यह सभी मानते ईं । कितने 'दी 'कादून किसान- महत्ता के लिये बने -उन्दीं के चलते ।




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