किसान सभा के संसार | Kisan Sabha Ke Samsara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.66 MB
कुल पष्ठ :
270
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे
एलिंखा है. मगर '१८७५ के बाद यह संगठन धीरेनघीरे. सभा का: रूप लेता
प्दे १६२०में मालाबार में; दालांकि वह भी टिक नहीं पाता!
उत्तर श्रौर पूर्व बंगाल में नील वोने वाले किसानों का विद्रोह भी इसी
:सुद्दत में श्राता है । बिहार के छोटा नागपुर का. टाना भगत श्रान्दोलन
भी झसदयाग युग के ठीक पहले जारी हुआ था | १६१४ में चम्पारन में
'िचहे गोरों के ।वरुदद गांधी जी का किसान-ग्रान्दोलन चला और सफल
ुद्ा झ्रपने तात्कालिक लक्ष्य में । गुजरात के -खेड़ा जिले में भी उनने
+किसान-श्रान्दो्लन इससे पूर्व उथी साल चलाया था | मगर वह श्रधिकांश
:विफल रहा । अवध में असहयोग से पदते १६२० म॑ बाचा रामचन्द्र के
“नेतुस्व में चाल्लू किसान-्रान्दोलन वहाँ के 'ताल्लुकेदारों के विरुद्ध था,
(जिसमें लूट-पाट भी हुई । इस प्रकार के श्रान्दोलन मुल्कों में जहाँ-तहाँ
और भी चले । ' मगर उन पर विशेष्र रोशनी डालने का श्रवसर यहाँ
-नहीं है । मट ्ललि
इनका निष्कष ; इनकी विशेषता
असहयोग युग के पूर्ववर्त्ती श्रान्दोलनों की विशेषता यह थी कि एक तो
पे श्रधघिकांश, झ्संगठित थे । दूसरे उनको पढ़े-लिखे लोगों का नेतृत्व प्रात न
था। अवध वाले में भी यद्दी बात थी । तींसरे उनने मार-काट का श्राश्रय
7लिया । तब तक जनान्दोलन का रहस्य किसे पिदित था ! यह भी बात ' थी
“कि ये विद्रोह और आन्दोलन पदले से तैयारी करके किये न गये थे । जब
किसानो पर होने वाले जुल्म व्यसद्य हो जाते थे और उन्हें श्रपने चाण
'का कोई दूसरा रास्ता दीखता न था तो वे एकाएक उचल पड़ते थे। फिर
तो सार-काद श्रनिवाय थी । परिस्थिति उन्हें एतदर्ध विवश -करती “थी
नया यों कदिये.कि जर्मीदार झर शोषक अपने घोर जुल्मों के हार उन्हें
इस हिंसा के जिये दविवश करते थे । यही उनकी -कमजोरी थी । इसी से
' .बेः्दबा रिये गये और विफल से रहे; हालांकि उनका 'वुन्दर परिणाम
किसानो के लिये: होकर रहा, यह सभी मानते ईं । कितने 'दी 'कादून किसान-
महत्ता के लिये बने -उन्दीं के चलते ।
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