शम्बर कन्या | Shambar Kanya

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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi

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पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शत. गा लोग श्रपनी भॉपड़ीमे चले । [उसका डाथ पकड़ कर खींचता है ] ऋचा [हाथ छुड़ाकर| कौशिक सुकममे भी जब अँसुश्योंकी नदियाँ बद्दानेकी शक्ति आ जायगी तब तुम्हारे साथ चला चलूँगा नबतक तो ई-ई-ई-ऊ-ऊ (किलकारी करके नाचता कूदता है ।) चलो । [दस्यु-कन्याझोंकि कन्घोपर हाथ रखकर चला जाता है |] विश्वरथ देवाधिदेव वर्ण श्रब मुक्ति दो मुझे । उमा कौशिक क्यों निःश्वास छोड़ रदे हो । मैं ठुम्दवरे पैरों पड़ती हूँ तुम्दारे हासके बिना में झन्धी हुई जा रदी हूँ । चलो जो बात तुम्हें नहीं शच्छी लगती उसकी मुझे भी चिस्ता नदीं हैं । विश्वरथ भीगी ऑखोंसि] शाम्बरी ठुम राजकन्या हो । एक वन्दी क॑ लिये इतना कष्ट क्यों उठाना चाहती हो न तो में तुम्हें अभी सुखी कर रहा हूँ न श्रागे कभी कर ही पाऊँगा | जमा [भीयी भ्ँखोंसे] पर में तो केवल तुम्हारे हो चरणोंमे रदसा चादती हूँ । [झाँसू पॉछुती दै 1] विश्वरथ देव शनायोमिं यदद सरलता कदाँसे ला भरी है उठो




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