गीता की राजविद्या | Gita Ki Rajvidya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.2 MB
कुल पष्ठ :
500
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ण यद्थषर॑ चेदविंदो चर्दस्ति पिशनन्ति. यद्यतयों वीतरागा। यदिच्छन्तीं त्रह्मचय चर्रास्त का तचे. पएदं. संग्रहेग प्रवक्ष्ये ॥१९1। सबंदाराणि संयस्यथ सनों हृंदि निरुष्य च । सुध्न्याधायात्मन प्रागमाखितों योगधारणासू 11१ २॥। ओमित्येकाबरं. ब्रह्म. व्याहरत्सामछुसरद् । य। प्रयाति त्यजन्देहें स याहि परसां गतिसू ॥ हे] अनन्यचेता। सतत यो. सां सरति नित्य । तस्थाहं सुलभ पाथें नित्ययुक्ता योशिना 1१४॥। सापुपेत्य.. पुनजेन्स . दुश्खालयमशासवतथू । नाप्चुवन्ति महदात्मान। संसि््धिं परसां गता। ॥ १५ आत्रह्जुवनाछोका। पुनरावर्तिनोध्जुन । सापुऐत्य हु. कोन्तेय पुनजन्म न. विद्यते ॥१६॥। सदसयुगपय त्तमहयं ट्रझाणों बिदु । रात्रिं युगसहस्रान्तां तेड्ोरावविदों जना ॥१७)। अव्यक्ताइयक्तय . सर्च प्रभवन्त्यहरांगमे । राच्यागसे... प्रठीयन्ते. तत्रैचाव्यक्तसंज्के ॥१८।। भूतग्राम से एवायं. भत्वा झृत्वा प्रठीयते । रान्यापसेध्वश . पाये... प्रभवत्यहरागसे 1१९) परस्तसात्तु भावो5न्यो5व्यक्तो5व्यक्तात्सनातनः | यः स सर्वेपु भरतेषु॒नश्यत्छु न विनद्यति ॥ २०) अन्यक्तोश्थर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम् । य प्राप्य ते सचिवतेन्ते तद्ाम परम सम ॥२१॥।
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