श्री रामचरितमानस अयोध्या काण्ड | Shri Ramcharit Manas Ayodhyakand
श्रेणी : साहित्य / Literature, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.34 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोस्वामी तुलसीदास - Gosvami Tulaseedas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छू अझयोध्याकारड घी दो०-सभय रानि कह कहसि किन कुसल राम सहिपालु । लखन भरवु रिपुदमचु सुनि भा कुजरी उर साजु ॥१३॥ कत सिख देइ हमहि कोउ माई । गालु करब केहिं कर चल पाई ॥ रामहि छाडि कुसल केहि राजू । जेहि जनेसु दे जुनराजू ॥ भयउकौसिलहि विधि श्रति दाहिम । देखत गरब रहत उर नाहिन ॥ देखहु कस न. जाइ सब्र सोभा | जो श्रवलोकि मोर मनु छोभा ॥। पूठु बिदेस न सोचु तुम्हारे। जानति हहु बस नाहु हमारें || नीद बहुत प्रिय सेज ठुराई | लखह न भूप कपट चतुराई || सुनि प्रिय बच्चन मलिन मनु जानी । झुकी रानि झ्रव रह श्ररगानी || पुनि श्रस कबहूँ कहसि घरफोरी । तब घरि जीभ कदावर्डे तोरी || दो०-काने खोरे. कूबरे छुटिल छकुचाली जानि । तिय बिसेषि पुनि चेरि कि भरतमाठु मुसुकानि ॥१४॥। प्रियबादिनि सिख दौन्हिें तोद्दी । सपनेहूँ तो पर कोपु न मोही || सुदिनु सुमंगल दायकु सोई | तोर कहा फुर जेहि दिन दोई ॥ जेठ स्वामि सेवक लघु भाई । यह दिनकर कुल रीति सुद्दाई || _ राम तिलकु जॉ सॉचिेहूँं काली । देखें मायु मन भावत श्राली ॥ कौसल्या सम सब महतारी । रामहि सहज सुमार्यें पिश्रारी ॥। मो पर करहिं सनेहु बिसेपी । मैं करि प्रीति परीछा देखी ॥। जॉं निधि जनसु दे करि छोहू । होहुँ राम सिय पूत पुतोहू ॥ प्रान ते अधिक रामु प्रिय मोरें । तिन्ह के तिलक छोंधु कस तोरे 1 दो०-भरत सपथ तोहि सत्य कहु परिहदरि कंपट दुराउ। हरष समय बिसमउ करसि कारन मोहि सुनाउ ॥१४॥। एकहिं बार श्रास सब पूजी । अब कल कहन जीभ करि दूजी ॥ फोर जोगु कपास भागों । मलेउ कहत दुख रउरेहि लागा ।|
User Reviews
No Reviews | Add Yours...