श्री रामचरितमानस अयोध्या काण्ड | Shri Ramcharit Manas Ayodhyakand

Book Image : श्री रामचरितमानस अयोध्या काण्ड  - Shri Ramcharit Manas Ayodhyakand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छू अझयोध्याकारड घी दो०-सभय रानि कह कहसि किन कुसल राम सहिपालु । लखन भरवु रिपुदमचु सुनि भा कुजरी उर साजु ॥१३॥ कत सिख देइ हमहि कोउ माई । गालु करब केहिं कर चल पाई ॥ रामहि छाडि कुसल केहि राजू । जेहि जनेसु दे जुनराजू ॥ भयउकौसिलहि विधि श्रति दाहिम । देखत गरब रहत उर नाहिन ॥ देखहु कस न. जाइ सब्र सोभा | जो श्रवलोकि मोर मनु छोभा ॥। पूठु बिदेस न सोचु तुम्हारे। जानति हहु बस नाहु हमारें || नीद बहुत प्रिय सेज ठुराई | लखह न भूप कपट चतुराई || सुनि प्रिय बच्चन मलिन मनु जानी । झुकी रानि झ्रव रह श्ररगानी || पुनि श्रस कबहूँ कहसि घरफोरी । तब घरि जीभ कदावर्डे तोरी || दो०-काने खोरे. कूबरे छुटिल छकुचाली जानि । तिय बिसेषि पुनि चेरि कि भरतमाठु मुसुकानि ॥१४॥। प्रियबादिनि सिख दौन्हिें तोद्दी । सपनेहूँ तो पर कोपु न मोही || सुदिनु सुमंगल दायकु सोई | तोर कहा फुर जेहि दिन दोई ॥ जेठ स्वामि सेवक लघु भाई । यह दिनकर कुल रीति सुद्दाई || _ राम तिलकु जॉ सॉचिेहूँं काली । देखें मायु मन भावत श्राली ॥ कौसल्या सम सब महतारी । रामहि सहज सुमार्यें पिश्रारी ॥। मो पर करहिं सनेहु बिसेपी । मैं करि प्रीति परीछा देखी ॥। जॉं निधि जनसु दे करि छोहू । होहुँ राम सिय पूत पुतोहू ॥ प्रान ते अधिक रामु प्रिय मोरें । तिन्ह के तिलक छोंधु कस तोरे 1 दो०-भरत सपथ तोहि सत्य कहु परिहदरि कंपट दुराउ। हरष समय बिसमउ करसि कारन मोहि सुनाउ ॥१४॥। एकहिं बार श्रास सब पूजी । अब कल कहन जीभ करि दूजी ॥ फोर जोगु कपास भागों । मलेउ कहत दुख रउरेहि लागा ।|




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