कर्म - योग | Karm - Yoga
श्रेणी : धार्मिक / Religious, योग / Yoga
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.14 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
बद्री दत्त पांडे (जन्म 15 फरवरी 1882, कनखल हरिद्वार) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। सात वर्ष की आयु में उनके माता-पिता का निधन हो गया। बद्री दत्त पांडे मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले थे। इसलिए माता-पिता के निधन के बाद वह अल्मोड़ा आ गए। अल्मोड़ा में ही उन्होंने पढ़ाई की। 1903 में उन्होंने नैनीताल में एक स्कूल में शिक्षण कार्य किया। कुछ समय बाद देहरादून में उनकी सरकारी नौकरी लग गई, लेकिन जल्दी ही उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पत्रकारिता में आ गए।
उन्होंने 1903 से 1910 तक देहरादून में लीडर नामक अखबार में काम किया। 1913 में उन्होंने अल्मोड़ा अखबार की स्थापना की। उन्होंने इस अखबार के जरिए
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अध्याय ११
' पापों का प्रायशित्त करने के लिए कर्म करते हैं । पहले बुरे कर्म
किये, फिर एक मन्दिर बनवा दिया । पूजारी को कुछ मेंट दे दी
और स्वर्ग के अधिकारी बन गये । निदान कर्म करने के भिन्न भिन्न
और शरसंख्य प्रयोजन हैं । ः
किन्तु सब से उत्तम वात यह है कि मनुष्य कर्म को केवल कर्म
समभक कर करे प्रत्येक देश में ऐसे धर्मात्मा पुरुष होते हैं, जो न
ख्याति के भूखे हैं न नाम के जौर न स्वर्ग की इच्छा रखते हैं;
परन्तु कर्म बरावर करते रहते, हैं । क्योंकि वे जानते हैं कि निष्काम
कर्म का परिणाम सदा अच्छा ही होता हैक ऐसे मनुष्य भी संसार
में बत्तमान हैं जो पवित्र और उच्च भावों को धारण किये हुए
दोनेद्धार श्रौर परोपकार में अपने जीवन को लगाते हैं श्रौर यही
उनके जीवन का उद्देश दोता है ।
जा लोग प्रसिद्धि और बढ़ाई के लिए कर्म करते हैं, उनको कर्म
।.. . # चेद में भी जहाँ मनुष्य को यावज्जीवन कमे करने की श्राज्ञा दी गई
है, वहाँ कर्म को केवल कर्म समझ कर ही करने की श्रा्ञा है । क्योंकि
सकाम ( किसी प्रयोजन या फल को लय में रख कर ) जा कमें किये जाते
' हैं, वे मनुष्य के सासारिक बरघनें के हेहु हे।ते हैं । परन्तु जो कस निष्काम,
बिना फल की झाशा के, कम के केवल कतेव्य समझ कर, किये जाते हैं
(. ययपि फल उनका भी होता है और कर्त्ता को सोगना भी पढ़ता है, तथापि )
ये मनुष्य के बन्घन के कारण नहीं हे सकते । प्रत्युत्त सुक्ति के लिए उपग्रेगी
होते हैं ।
[. श्रनुवादुक |]
न
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