मानस कौमुदी | Manas Koumudi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.13 MB
कुल पष्ठ :
319
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११ ।
वाल्मीकि में मायासीता भर रावण द्वारा उसके हुरण का वृत्तान्त नहीं मिलता और
न हो उसमे सेतुबन्घ के समय राम दारा शिव की प्रतिष्ठा की कथा आती है ।
ये दोनों प्रसंग अध्यात्मरामायण मे भी है ।
किन्तु, मानस के कंथानक को केवल वाल्मीकि और अध्यात्मरामायण की
सामग्री तक सीमित कर देखना उचित नहीं है। इस पर प्रसन्नराघव, सहानाटक,
शिवपुराण, भुशु डिरामायण, भागवतपुराण आदि कई रचनाओं का प्रभाव पडा है ।
सती द्वारा राम की परोक्षा का प्रसंग शिवपुराण से गृह्ीत है तथा पुष्पवाटिका का
प्रसंग प्रसन्नराचव से । प्रसन्नराघव मे सीता पुज करने के लिए चथ्डिकायतन
की ओर जाती है, तो राम सीता और उनकी सखियों का वा्तालिप छिप कर मुंनते हैं ।
दोनो एक दूसरे को देखते और अभगुरक्त हो जाते हैं। कुछ सधोधन के
साथ यही प्रसंग मानस में जाया है । घनुष-भग के बाद आयोजित परशुराम-
लक्ष्पण-सवादे भी प्रसतराघव पर आधारित है । वित्नश्ट में जनक के आगमन
( भयोध्याकाण्ड ) और पस्पा-सरोवर के किनारे नारद के आगमन तथा रास नारद-
सवादे ( अरग्यकाण्ड ) के स्रोत क्रमश श्रवणरामायण और रासगीतगोविन्द हैं ।
लकाकाण्ड का मगद रावण-सवादे महानाटक पर आधारित है। ब्यौरे मे जा
कर देखने पर मानस के कथयानक के कई छोटे-बड़े प्रसंग वार्मीकि और अध्यात्म-
रामायण से भिन्न सोतो पर आधारित सिद्ध होते हैं ।
लेकिन, इसका अये यह नही कि मानस यहाँ-वहाँ से गृद्ीत सामग्री पर
भाधारित रचना है। अपनी समग्रता में यह एक सौलिक कृति है । इसकी
मौलिकतां पुर्वेपरम्परा से मृह्दीत सामग्री के चयन भर व्यवस्थापन में है, जिसके
पीछें भक्त, समाजनिर्माता और कवि की सम्मितित दृष्टि काम करती है । इसमें
कया के शिल्प, राम तथा उनसे जुडे हुए पाती को चरिवगत मर्यादा और अपने
मुख्य प्रतिपाद्य विपय भक्ति की दृष्टि से बहुत से घसगों को या तो पुरी तरह
छोड़ दिया गया है या उनका सकेत भर किया गया है तथा कई घटनाओं का कम
परिवतित कर दिया गया है । छोड़े हुए कुछ प्रत्य और विवरण हैं--राम और
सीवा की श्द गारिक चेष्टाएँ शम्वदुक-वघ और सीतान्त्याग ।. जहाँ वाल्मीकि
रामायण में राजा दशरथ के अश्वमेघ यज्ञ के सकत्प के बाद कऋष्यस्थ गे की कथा
( वालकाण्ड, सगें €-११५ ), अश्वमेघ यज्ञ ( सर्ग॑ १२-१४ ) भौर पुप्लेध्टि यज्ञ
( चगें १५-१८ ) का विस्तृत विवरण मित्रता है, वहाँ मातस मे परे विषय को
बहुत कम पक्तियो मे समाप्त कर दिया गया है ( दे० मानस-को मुददी, स० १६ ) 1॥
वात्मीकि मे, मृत्यु से पूर्व दशरथ कौशत्या को अस्धतापस की कथा सगे ६३-६४ में
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