हिन्दी साहित्य पिछला दशक | Hindi Sahitya Pichla Dashak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हिन्दी साहित्य पिछला दशक - Hindi Sahitya Pichla Dashak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विश्वनाथ - Vishvanath

Add Infomation AboutVishvanath

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
समस्याश्रों के परिप्रेक्ष्य में ही कृति की श्रेष्ठत्: की. सम्धावनायें देखी जा सकती हैं। फिर श्र ष्ठता समय की सीमाओ्रों में नहीं बंघती अपितु हर श्रेप्ठ कृति का सौन्दर्य तो प्रद्येक युग में वढ़ जाता है । इतना ही नहीं, उसमें प्रत्येक नये युग को नया. जीवन-संदेश देने की साम्थ्य॑ होती है। श्रावस्यकता उस संदेश को ढृढ़ने की है । गौर समुचित मूल्यांकन की प्रथम भ्रौर श्रन्तिम दातं है, इस प्रवहमान सत्य को श्रपने युग की वाणी देना । यह तेभी सम्भव है जव युग-वोघ श्रौर युगानुभूति के समस्त क्षेत्रों की परीक्षा- समीक्षा हो, क्योंकि किसो भी नवीन जीवन-द्शन के लिये कोई लघु मार्ग नहीं । इस सीमित कलेवर में हिन्दी साहित्य की सभी विधाग्रों का मुल्यांकन सम्भव नहीं, किन्तु प्रयास किया गया है कि यह पुस्तक इस दशक के साहित्य की परिवर्तित सीमाग्रों का श्रामास भ्रवश्य दे । यह विकास श्रौर परिपक्वता का सीमान्त नहीं हो सकता । पुस्तक के प्रारूपकारों श्रौर लेखकों को कठिनाई श्रौर संकोच का वोध श्रवद्य हुश्रा पर सृजन की--विवादग्रस्त ही सही दिल्प, शैली-विपय भाव-धिघान ग्रादि की नवोन उपलब्धियों श्रौर उनकी विकासोन्मुख गति को प्रारम्भ से ही मरुल्पांकन के संकेत दे सके, इसी श्रथें में यह प्रयास मुर्त रूप ले सका है । श्रौर वह प्रयास इसलिये भी कि हम मुड़कर देखने की श्रादत डालें, मुड़कर देखने का महत्व सम भें । पुस्तक की एक श्रौर विशेषता है; श्रौर वह यह कि लगभग सभी समीक्षक नई पीढ़ो के हैं--- अ्रनुभव के हष्टिकोण से भी श्र श्रायु की हृष्टि से मी । इस प्रकार यह महत्वपूर्ण संकलन इस प्रश्न का उत्तर है कि नई पीढ़ी समसामयिक हिन्दी साहित्य को फिस हष्टि से झरांकती है । श्रपनी उपलब्धियों का स्वयं मूल्यांकन --श्रात्म-विद्लेपण --निस्मंदेह हमारे भविष्य साहित्य को निद्चित गति श्रौर निधिचत दिला देने में सहायक होगा । इस पुस्तक के श्रन्तिम चार निवन्धों को मैंने एक विशेष हृष्टि से जोड़ा है । *वमलेखन' ददाक के उत्तराद्ध के भाव-बोघ श्रौर मुल्य बोध की नई संज्ञा है श्रौर 'दशक भोर दस' के तीन निवन्ध साहित्य के उन स्वरों को मुखरित करते हैं जो सृष्टा के किसी श्रनजान कोने में सुरक्षित पढ़े ये । भंत में में संकलन के सभी लेखकों का श्राभार प्रदशित करता हूँ, ग्रपनी भोर से ब्दछ्ध




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now