भारत के प्राचीन राजवंशभाग 3 | Bharat Prachin Rajvansh Bhag 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.21 MB
कुल पष्ठ :
523
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पण्डित विश्वेश्चरनाथ रेड - pandit vishveshcharnath Red
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)च् भारतके प्राचीन राजवंदा और राष्ट्रवर्य दाब्दोंकी रचना की गई होगी और इसी प्रकार राष्ट्र शब्द- के पहले महा उपपद लगाकर इस जातिसे दासित प्रदेशका नाम महाराष्ट्र ख्खा गया होगा । उपर्युक्त स्थानोंके लेखोंमिं राष्ट्रकूटोंका नाम होनेसे भी प्रकट होता है कि ये छोग उत्तरसे ही दक्षिणमें गए ये क्यों कि ये स्थान हिन्दु- स्तानके उत्तर-पश्चिमी प्रदेशसे मिठते हुए हैं । मयूरगिरिके राजा नारायण शाहकी सभामें रुद्रनामका एक कवि था। उक्त राजाकी आज्ञासे उस कविने झाक संब्त् १७१८ ( बि० सं० १६५३-ई० सं० १५९६ ) में राट्रौरबंशमहाकाव्य नामका एक काव्य बनाया था । इसके प्रथम सर्गमें लिखा है --- स्ट् # अछक्ष्यदेहा तमवोचदेघा राजन्ञसावस्तु तवैक सूचुः । झनेन राष्ट्रें च कुल तचो दें राष्ट्रो( प्ट्री )ढ नामा तदिद प्रतीतः ॥२९ ॥ अर्थात् --( लातनादेवीने ) आकाशवाणीके जरियेसे उससे कहा कि हे राजन् यह तेरा पुत्र होगा और इसने तेरे राष्ट्र ( राज्य ) और कुछका भार उठाया है इसलिये इसका नाम राष्ट्रद होगा । राष्ट्रकटों और गदड़वालोंका वंश । यद्यपि विक्रम संबत् ९७० तकके ताम्रपत्रों आदिमें इनके सूर्य या चन्द्रबंशी होनेका कुछ भी उल्लेख नहीं है तथापि पहले पहल [१] जिस अकार सालव जातिसे शासित प्रदेशका नाम मालवा और गुजर जातिसे शासित प्रदेशका नाम गुजरात हुआ उसी प्रकार राष्ट्रकूट जाति- से शासित प्रदेश दक्षिण काठियावाड़का नाम सुरा्ू ( सोरठ ) और नर्मदा और मद्दानदीके बीचके देशका नाम राट हुआ होगा । तथा राटको ही बादसें लोग लाटके नामसे पुकारने छगे हैं । ( गुजरातके ऊपरका वह भाग जिसमें अली+ राजपुर झाबुआ आदि राज्य हैं शायद राठ नामसे प्रसिद्ध है। ) गिरनार पवेत परके स्कन्दगुप्तके लेखमें भी सुरठ प्रदेशका उल्लेख है। इस प्रकार राष्ट्र डा है खशष् ( सोरठ ) और मद्दाराष्टू अ्रदेश राष्ट्कूटोंकी ही कौर्तिकाः कराते हैं।
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