जसवंतसिंह ग्रन्थावली | Jaswant Singh Granthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डर ( १४ ) ब्याकार. -प८.६ ५ ४ ३ लेख्य श्रंश -७ ३.६ पं क्ति ्न्रे0 श्रुच्नर०. -१४ से १७ पत्र - १४ स्वरूप... -लिपि सुस्पष्ठ सु दर । स्थिति श्रच्छी । लिपि... -देवनागरी पुष्पिका. -इति श्री भाषायूषन समाप्त सं० १८६१ श्राश्विन शुक्ज १४ गुरो शुर्म । प्राप्तिस्थान -श्रार्यमाषा पुस्तकालय काशी नागरीप्रचारिणि समा | संख्या -१७८ संकलयिता श्रौर टीकाकार - दलपति राय वंशगोपाल ( विवरण यों दिया है- नवत सुरातुर मुकुठ मह्दि प्र्िर्जिजित श्रलिमाल || किए रत्न सब नीलमनि सो. गणुरा रछिपाल ॥ १ ॥ भाषाभूषन श्रलंकृति कहुं यक लक्षनहीन श्रम करि ताहि सुधारि लो दलपति राइ प्रबोन ॥ २ ॥ कहूं कहू पडिलें घरे उदाइरन सरसाइ कहू नए करिके धरे लक्षन लब्छित पाइ ॥ ३ || श्रथकुबल यानद को बाध्यी दलपति राइ वंसीघा कबि ने घरे कहूं कबित्त बनाइ ॥ ४ || मेद पाट श्रीमाल कुल घिप्र महाजन काइ बाती अमदाबाद के बैसी दलपति राइ || ५ || जेतें रीभि जंवाहिरी लेत जंवाहिर पेषि त्यौ कबिजन सब रौमिर श्रति श्रदूमुत श्रम देषि ॥ ६ ॥ दरबिलोम जव को न किय नहिं थिष्रिश्र उरभार झपने चित्त विनोद को कीन्हों यहै प्रकार ॥ ७ || भोहें कुटिल कमान सी सर से पैने नेन | बेघत ब्रज श्रबलानि दिय बंडीघर दिन रेन ॥ ८ ||




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