रैदास जी की बानी और जीवन चरित्र | Raidasji Ki Bani Aur Jivan Charitr
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.45 MB
कुल पष्ठ :
163
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सब घट उंतर रमसि निरंतर, में देखन नहिं जान!
शुनसथ तार मार सब औगुन, छत उपकार न माना / ३
मत तारि मारि असम से, कैसे करिं' निस्तारा
कह रैदास करन करुनामय, जे जे जगत अधारा ॥ ४
॥ हरे बी
राम चिन संसय गाँठि न छूटे । ः
काम किराघ लेन मद माया, इन पंचन मिछि लूटै (टेक
हम वड़ कन्ि कुलीन हम पंडित, हम जागी संन्यासी।
ज्ञानी गुनी सूर हम दाता, याहु कहे मत्ति नासी ॥ ॥
पढ़े गुने कछु समुभि न परइ, जी ढाँ भाव न दुरसे ।
लोहा हिरन' हाइ थे कैसे, जाँ पारस नहिं परसे ॥ २॥
कह .रेदास और असमुभक्त सी, चालि परे भ्रूम,; मेरे, ।,-
एक अधार नाम नरहारि के, जिवन सान धन मारे ॥.३ !
॥४॥
जबराम नाम कहि गावैगा। तब मेद अमेद समावैगा ॥टेक॥
जे सुख हूँ या रस के परसे, से सुख का कहिं गाबेंगा॥ ९ ॥
गुरुपरसाद भें अनुसा मति, विप अस्ित सम घावैगा ॥२॥
कह रैदास मेटि आपा पर, तब वा टैरहि पावेगा ३ ॥
है कि गन | दि अग
संततो अनिनं भगति यह नाहीं । - हर
जब लग सिर जत मन पाँचेा गुन, व्या पत है या माहीं टेक
साईं आन अंतर कर हरि सेँ, अपमारग के आने 1
काम क्रोध मद लाभ माह की, पल पल पूजा .ठाने ॥१0
सत्य सनेह इप्ट अँग लावे, असूथल असृथल खेले । «
जा कछु मिलैं,आन आखत' से, सुत दारा सिर मेठी ॥२॥
* सोना । दिनन्य, , | प्र, केढ़ चावल । 5. कुछ चावल । ! '
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