रैदास जी की बानी और जीवन चरित्र | Raidasji Ki Bani Aur Jivan Charitr

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Raidasji Ki Bani Aur Jivan Charitr by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) सब घट उंतर रमसि निरंतर, में देखन नहिं जान! शुनसथ तार मार सब औगुन, छत उपकार न माना / ३ मत तारि मारि असम से, कैसे करिं' निस्तारा कह रैदास करन करुनामय, जे जे जगत अधारा ॥ ४ ॥ हरे बी राम चिन संसय गाँठि न छूटे । ः काम किराघ लेन मद माया, इन पंचन मिछि लूटै (टेक हम वड़ कन्ि कुलीन हम पंडित, हम जागी संन्यासी। ज्ञानी गुनी सूर हम दाता, याहु कहे मत्ति नासी ॥ ॥ पढ़े गुने कछु समुभि न परइ, जी ढाँ भाव न दुरसे । लोहा हिरन' हाइ थे कैसे, जाँ पारस नहिं परसे ॥ २॥ कह .रेदास और असमुभक्त सी, चालि परे भ्रूम,; मेरे, ।,- एक अधार नाम नरहारि के, जिवन सान धन मारे ॥.३ ! ॥४॥ जबराम नाम कहि गावैगा। तब मेद अमेद समावैगा ॥टेक॥ जे सुख हूँ या रस के परसे, से सुख का कहिं गाबेंगा॥ ९ ॥ गुरुपरसाद भें अनुसा मति, विप अस्ित सम घावैगा ॥२॥ कह रैदास मेटि आपा पर, तब वा टैरहि पावेगा ३ ॥ है कि गन | दि अग संततो अनिनं भगति यह नाहीं । - हर जब लग सिर जत मन पाँचेा गुन, व्या पत है या माहीं टेक साईं आन अंतर कर हरि सेँ, अपमारग के आने 1 काम क्रोध मद लाभ माह की, पल पल पूजा .ठाने ॥१0 सत्य सनेह इप्ट अँग लावे, असूथल असृथल खेले । « जा कछु मिलैं,आन आखत' से, सुत दारा सिर मेठी ॥२॥ * सोना । दिनन्य, , | प्र, केढ़ चावल । 5. कुछ चावल । ! '




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