ज्ञान सार भाग - १ | Gyan Saar Bhag-1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.25 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र्श की भावना अपने माता-पिता के सामने रकसी । श्री नथ- पिजयजी ने भी जसबत की. द्वि प्रतिभा श्र गुणमय जीवन देखा उहाने नारायण शेठ व सामाग्यदेवी को कहा -- पुण्यणशालो श्राप धन्य हो कि श्रापदों ऐसा प्रु्रत्न प्राप्त हुआा हैं । एवं वार ही बर्म का उपदेश सुन वर जसबत वैरागी चना है । जसवत भले श्राज बच्चा है निक्म उसकी आत्मा बच्चा नहीं है । श्रात्मा महानु है। यदि श्राप पुब्रनेह को सयमित कर जसवन्त को चारिन माग पर चलने की अ्रनुज्ञा प्रदान यरें तो जसयत भविष्य में भारत वी भव्य विभ्वूति बन संकती है श्रौर हजारों लाखों मनुष्यों का उद्धारव वन सकता है । कहिए श्राप का हृदय बया चाहता है ? नारायण व. सामाय्यदेवी की श्राखों में श्रासू भर भ्राये । भासू थे हप के शासू थे पुब्विरह वी व्यथा वे | पुर त्याग के पथ पर चलवर स्व-पर झ्राह्मा का महा करयाण करेगा... परमात्मा महावीरदेव के शासन को उज्वल बरेगा... इस कत्पना से माता पिता हर्पान्वित बने । साथ ही विनयी प्रसन्तमुख श्रौर सुकुमाल पुत्र घर छोड कर माता-पिता व स्नेही-स्वजनों को छोडवर चला जायगा इस कल्पना से वे शोकाबुल बन गये । गुरुदेव श्री नयविजयथजी ने बहा से घिह्ार किया । चातुर्माम के लिए पाटण पघारे 1 वनोरा में जसबत व्याजुल था । उसका मन गुरूदेव वा साननिध्य चाहता या । याने पोने से येलने से उसवा मन उठ गया । उसकी झासों में आसू भर भर श्राने लगे
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