बीजक मूल | Bijak Mool

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Bijak Mool by श्री कबीर साहिब - Shri Kabir Sahib

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कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी ह

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन, सा नें-नदलफिन नहनलेन्नेन्न सिननमन बन्द नया, अपनाने मनन ही छह चीजक मूल कह १३ रमंनी ॥ १२ ॥ ड माटिक कोट पपान को ताला । सेईक वन सोई रखवाला ॥ सो बन देखत जीव डढेराना । ब्राह्मण £ बेष्णव एके जाना ॥ ज्यों किसान फिसानी करई । | _ उपने खेत बीज नहईिं परई॥ थाड़ि देहु नर केलिक £ : केला । बूढ़े दोऊ गुरु थौ चेला ॥ तीसर बूढ़े पारथ भाई । जिनवन डाहयोदवा लगाई ॥ मैंकि भूँकि छूकर मरि गयऊ । काज न एक सियार “ से भयऊ ॥ साखी;मूस विलाई एक संग, कहु कैसे रहि जाय । अचरज एफ देखो हो सतो, दस्ती सिंघहि साय ॥१२॥ स्मैनी॥ १३ ॥ ._ नहीं परतीत जो यह संसास । दर्व की चोट £ कठिन के मारा ॥ सोतों शेपी जाइ जुकाई । ई काहके परतीत न आए ॥ चले लोग सब मूल गमाई ॥ यूमकी वाडि काटि नहिं जाई श्राजु काज 'पफरक ककलउनक कफ फफफलुलफल कक ५ दे 'कुन्बुन्कत ड ननानी:्खनते कान: इतनी कलनरक हमें:




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